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*बहिन बीर सब देखिये, नारी अरु भरतार ।*
*परमेश्वर के पेट का, दादू सब परिवार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ माया का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ##भाग १ ##काम*
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भक्त युक्ति से करत है, कामी काम विनाश ।
सभा में बिछवा किया, एक साधु का नाश ॥२६॥
एक उच्च कुल की रूप यौवन संपन्न भक्त माता थी, उसकें यहां प्रति दिन सत्संग होता था । वह स्वयं सितार पर भजन गाती थी ।
एक साधु उनकें सत्संग में हर रोज आता रहा । उसके मन में कामवासना उठी, अन्त में उसने अपनी बात माता से कह दी । माता महान भक्त और विचारशील थी । बड़े प्रेम से बोली - "अहो ! यह क्या बड़ी बात है, आप कल अमुक समय पधारना ।"
साधु को जो समय बताया था, उसके पूर्व ही अपनी सत्संगियो को बुलवा कर सत्संग आरंभ कर दिया । समय पर साधु आया । माता ने अपनी दासी से कहा - "सभा के बीच शीध्र शय्या बिछा दो ।"
दासी ने तुरन्त आज्ञानुसार शय्या तैयार कर दी । माता उठी और हाथ जोड़ कर साधु से बोली - "पधारिये महाराज में तैयार हूँ।" यह सुनकर साधु नीचा मस्तक करके चुप रहा । माता ने कहा - "क्यों अब क्यों नहीं बोलते ?"
तब लज्जित होकर होकर साधु बोला - "इन लोगों के देखते मैं वैसा नहीं कर सकता ।"
माताने कहा "इन लोगों के देखते आप वैसा नहीं कर सकते, तब भला मैं मेरे सर्ज्ञ परमात्मा के देखते वैसा कैसे कर सकती हूँ।"
यह सुन साधु चरणों में पड़ गया और उसकी काम वासना सदा के लिए नष्ट हो गई ।
### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ###
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्य राम सा ###
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