#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*सांई तेरे बंदौं की बलिहारी ।*
*सुहबति रहै परम सुष उपजै*
*बातैं कहत तुम्हारी ॥(टेक)*
*चलतैं फिरतैं जागत सोवत*
*दरदवंद अति भारी ।*
*दुनियां सौं फारिक ह्वै बैठे*
*राह गही कछु न्यारी ॥१॥*
हे स्वामिन् ! मैं आपके आराधकों का कृतज्ञ हूँ । आपके साथ रहने में परम सुख का अनुभव होता है । आपके गुण गान का सुख तो वर्णित ही नहीं किया जा सकता । चलते फिरते हुए, सोते जागते हुए, आप प्राणियों पर अतिशय दयालु रहते हैं ॥टेक॥
आप इस संससर से पृथक रहते हुए कुछ भिन्न मार्ग पर चलते हैं । आपका ज्ञान एवं ध्यान सब कुछ निर्मल है । आप सम्यग्दृष्टि हैं ॥१॥
(क्रमशः)
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