卐 सत्यराम सा 卐
*मांही सूक्ष्म ह्वै रहै, बाहरि पसारै अंग ।*
*पवन लाग पौढ़ा भया, काला नाग भुवंग ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ मन का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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*किंचित् प्रमाद से ही योगी का पतन -*
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किंचित् किये प्रमाद भी, पतन योगी का होय ।
उद्रराम सुत नीगमन, कर न सके फिर कोय ॥२८॥
मगध प्रदेश मे माही नदी के तटस्थ वन में एक उद्रराम सुत नाम के महात्मा रहते थे । वे उच्च कोटि के सिद्ध योगी थे । मगधराज के निमंत्रण पर प्रतिदिन दोपहर के समय आकाश मार्ग से उड़कर उनके यहाँ भिक्षा करने जाते थे । मगधेश्वर उनका यथा शक्ति सम्मान करते थे ।
राजा को एक दिन किसी कार्यवश बाहर जाना था। उद्रराम सुत को भिक्षा देने के पवित्र कार्य में उन्होने अपनी दासी की कन्या को नियुक्त किया । कारण वह अत्यंत शुद्धाचरण वाली थी । छोटी अवस्था तथा रूपवती भी थी । राजा उसे ठीक समझा कर चले गये उद्रराम सुत ठीक समय पर आकाश मार्ग से राजमहल में उतरे । उसने स्वागत करके भली प्रकार भिक्षा दे दी । वे भोजन करने लगे । दासी की कन्या उनकी सेवा में उपस्थित थी । भोजन करके वे उसी की ओर देखने लगे । वह महान संकोच में पड़ गयी ।
उसके बाद योगी ने पुन: आकाश मार्ग से जाने का बहुत प्रयत्न किया किन्तु नहीं उड़ सके । उनकी आकाश गमन की शक्ति उनके उपरोक्त किंचित प्रमाद से ही नष्ट हो गई । वे लज्जा से नत हो गये और दासी की कन्या से बोले - 'मेरा विचार आज आकाश मार्ग से उड़कर तपोवन में जाने का नहीं है । राजधानी में घोषणा करा दो कि योगी उद्रराम सुत आज असंख्य नागरिकों को दर्शन देने के लिये राज मार्ग से पैदल अपने तपोवन को जायंगे । यह कर अपने प्रमाद को छिपाने के लिये अपनी बात बदल दी । घोषणा सुनते ही अगणित जनता मार्ग पर आ डटी, उद्रराम सुत के जयधोष से आकाश गूंज उठा किन्तु उनकी योग सिद्दि समाप्त हो गई ।
### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ###
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
######## सत्य राम सा

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