रविवार, 8 सितंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
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४० - चेतावनी उपदेश । सिंह लील ताल
खालिक जागे जियरा सोवे, क्यों कर मेला होवे ॥टेक॥
सेज एक नहिं मेला, तातैं प्रेम न खेला ॥१॥
सांई संग न पावा, सोवत जन्म गमावा ॥२॥
गाफिल नींद न कीजे, आयु घटे तन छीजे ॥३॥
दादू जीव अयाना, झूठे भरम भुलाना ॥४॥
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सावधान करने के लिए उपदेश कर रहे हैं -
ईश्वर तो जीवों की रक्षा करने के लिए सदा जागते रहते हैं और जीव अज्ञान निद्रा में सोया रहता है, फिर ईश्वर से कैसे मिल सकता है ? 
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दोनों एक हृदय शय्या पर ही रहते हैं, फिर भी मिलन नहीं हुआ, इससे ज्ञात होता है - जीव ने ईश्वर से प्रेम ही नहीं किया । 
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प्रभु के साथ रह कर भी प्रभु को नहीं प्राप्त कर सका, अज्ञान निद्रा में सोते हुये ही सारा जन्म खो दिया । 
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आयु घटती जा रही है, शरीर क्षीण हो रहा है, अरे ! अब तो अज्ञान निद्रा में मत पड़ा रह ।
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यह अज्ञानी जीव मिथ्या भ्रम में पड़कर प्रभु को भूल रहा है । 
(क्रमशः)

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