मंगलवार, 17 सितंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
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४९ - नाम विश्वास । राज मृगाँक ताल
राम - धन खात न खूटै रे !
अपरँपार पार नहिं आवै, आथि१न टूटै रे ॥टेक॥
तस्कर२ लेइ न पावक३ जालै, प्रेम न छूटै रे ॥१॥
चहुं दिशि पसर्यो बिन रखवाले, चोर न लूटै रे ॥२॥
हरि हीरा है राम रसायन, सरस४ न सूखै रे ॥३॥
दादू और आथि५ बहुतेरी, तुस६ नर कूटे रे ॥४॥
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राम - नाम में विश्वास करा रहे हैं - राम - रूपी - धन खाने से अर्थात् चिन्तन करने से समाप्त नहीं होता, अपार होता जाता है । उसके फल का पार नहीं आता । यह धन राशि१ कम नहीं होती । 
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इसे चोर२ नहीं चुरा सकता, अग्नि३ नहीं जला सकता, इसीलिए इससे प्रेम नहीं हटता । 
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बिना ही रक्षक यह धन चारों दिशाओं में फैला रहता है अर्थात् भजन की कीर्ति सब ओर रहती है, तो भी उसे निंदक रूप लुटेरे लूट नहीं सकते । 
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हरि नाम अमूल्य हीरा है । राम - भक्ति - रसायन सदा हरा४ रहता है, कभी भी नहीं सूखता । 
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राम धन बिना, अन्य अर्थ - राशि५ की प्राप्ति का साधन करना, भूसा६ कूटने के समान है, उससे अन्न नहीं निकलता, वैसे ही अन्य धन तृप्ति प्रद नहीं है । किसी - किसी प्रति में "तुस" के स्थान में "उस" भी है । उसका अर्थ रामधन से अन्य जो बहुत - सी धनराशियाँ५ हैं, उन धन - राशियों वाले नर को तो डाकू आदि मारते हैं किन्तु राम - धन के लिये कोई नहीं मारता, प्रत्युत सेवा करते हैं ।
(क्रमशः)

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