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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू तन तैं कहाँ डराइये, जे विनश जाइ पल बार ।*
*कायर हुआ न छूटिये, रे मन हो हुसियार ॥*
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साभार ~ Atul Tock
अहंकार जो है, सूडो सेंटर है, झूठा केंद्र है। असली केंद्र नहीं है, तो उससे काम चलाना पड़ता है। वह सुब्स्टिचुट सेंटर है, परिपूरक केंद्र है। जैसे ही कोई व्यक्ति परमात्मा को केंद्र बना लेता है, इस परिपूरक की कोई जरूरत नहीं रह जाती, यह विदा हो जाता है।
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इसलिए कृष्ण का जोर है कि तू सारे कर्ता के भाव को मुझ पर छोड़ दे। और जो ऐसा कर पाता है, वह समस्त कर्म—फल से मुक्त हो जाता है, शुभ और अशुभ दोनों से। उसने जो बुरे कर्म किए हैं, उनसे तो मुक्त हो ही जाता है, उसने जो अच्छे कर्म किए हैं, उनसे भी मुक्त हो जाता है।
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बुरे कर्म से तो हम भी मुक्त होना चाहेंगे, लेकिन अच्छे कर्म से मुक्त होने में जरा हमें कष्ट मालूम पड़ेगा। कि मैंने जो मंदिर बनाया था, और मैंने इतने रोगियों को दवा दिलवाई थी, और अकाल में मैंने इतने पैसे भेजे थे, उनसे भी मुक्त कर देंगे? वह तो मेरी कुल संपदा है !
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लेकिन कृष्ण कहते हैं, दोनों से, शुभ अशुभ दोनों से ! क्योंकि कृष्ण भलीभांति जानते हैं कि शुभ करने में भी अशुभ हो जाता है। शुभ भी करना हो, तो अशुभ होता रहता है। वे संयुक्त हैं। अगर शुभ भी करना हो, तो अशुभ होता रहता है। अगर मैं दौड़कर, आप गिर पड़े हों, आपको उठाने भी आऊं, तो जितनी देर दौड़ता हूं उतनी देर में न मालूम कितने कीड़े—मकोड़ों की जान ले लेता हूं! न मालूम कितनी श्वास चलती है, कितने जीवाणु मर जाते हैं !
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मैं कुछ भी करूं इस जगत में, तो शुभ और अशुभ दोनों संयुक्त हैं। दोनों संयुक्त हैं। मैं आपसे यह कह रहा हूं कि कालाबाजारी करके मंदिर बनाया है, ऐसा नहीं। कुछ भी करिएगा, तो आप पाएंगे कि अशुभ भी साथ में हो रहा है। इस जगत में शुद्ध शुभ नहीं किया जा सकता, शुद्ध अशुभ भी नहीं किया जा सकता। अशुभ करने भी कोई जाए तो शुभ होता रहता है, शुभ करने भी कोई जाए, तो अशुभ होता रहता है। वे संयुक्त हैं; वे एक ही चीज के दो छोर हैं। विभाजन मन का है; अस्तित्व में कोई विभाजन नहीं है।
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इसलिए कृष्ण कहते हैं, शुभ—अशुभ दोनों से मुक्त हो जाता है। और उनसे मुक्त हुआ मुझको ही प्राप्त होता है। क्योंकि परमात्मा, अर्थात मुक्ति। इसलिए जिन्होंने मुक्ति को बहुत जोर दिया, उन्होंने परमात्मा शब्द का उपयोग भी नहीं करना चाहा। महावीर ने परमात्मा शब्द का उपयोग नहीं किया। क्योंकि महावीर ने कहा, मुक्ति पर्याप्त है, मोक्ष पर्याप्त है। मोक्ष शब्द काफी है। मुक्त हो गए, सब हो गया। अब और चर्चा छेड़नी उचित नहीं है।
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लेकिन महावीर के लिए मोक्ष का जो अर्थ है, वही हिंदुओं के लिए मुसलमानों के लिए ईश्वर का अर्थ है। ईश्वर का और कोई अर्थ नहीं है, परम मुक्ति, दि अल्टिमेट फ्रीडम।
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क्योंकि जब तक अहंकार मौजूद है, तब तक मैं कभी मुक्त नहीं हो सकता। क्योंकि अहंकार की सीमाएं हैं, कमजोरिया हैं। अहंकार की सुविधाएं—असुविधाएं हैं। अहंकार कुछ कर सकता है, कुछ नहीं कर सकता। बंधन जारी रहेगा। सीमा बनी रहेगी।
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सिर्फ परमात्मा ही जब मेरा केंद्र बनता है, मेरी सब सीमाएं गिर जाती हैं। उसके साथ ही मैं मुक्त हो जाता हूं। उसके साथ ही मुक्ति है। वही मुक्ति है।
आज इतना ही। पांच मिनट बैठेंगे। जल्दी न करेंगे। पांच मिनट कीर्तन में सम्मिलित हों। और बीच में पांच मिनट कोई भी न उठे, अन्यथा बैठे लोगों को तकलीफ होती है।
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गीता-दर्शन भाग ४, अध्याय ९,
OSHO

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