शनिवार, 14 सितंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*श्री दादू अनुभव वाणी, द्वितीय भाग : शब्द* 
*राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
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४६ - हितोपदेश । नट ताल
हुसियार रहो, मन मारेगा, सांई सतगुरु तारेगा ॥टेक॥
माया का सुख भावै, मूरख मन बौरावै रे ॥१॥
झूठ साच कर जाना, इन्द्री स्वाद भुलाना रे ॥२॥
दुख को सुख कर मानै, काल झाल नहिं जानै रे ॥३॥
दादू कह समझावै, यहु अवसर बहुरि न पावै रे ॥४॥
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कल्याणप्रद उपदेश कर रहे हैं - 
हे साधक ! सावधान रहना, कारण अचेत रहने पर यह चँचल मन तुझे परमार्थ दृष्टि से मार देगा अर्थात् विषयों में डाल देगा । यदि कहीं मन के धोखे में आकर गिर भी जाये तो परमात्मा और सद्गुरु की शरण जाना, वे तेरा उद्धार कर देंगे । 
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इस मन को मायिक सुख ही अच्छे लगते हैं । यह मूर्ख उन्हीं में पागल हो जाता है । इन्द्रियों के विषय - रस में मोहित होकर इसने मिथ्या को सत्य समझ लिया है, 
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दु:ख को सुख मान लिया है । यह कालाग्नि की ज्वाला को नहीं जानता । हम तुम्हें समझा कर कहते हैं, यह समय जाने पर फिर नहीं मिलेगा । 
अपने शिष्य आँधी ग्राम निवासी गरीबदासजी को यह पद उपदेश रूप में लिख भेजा था । गरीबदास जी ने फिर उत्तर में इसी को "सांई सद्गुरु तारेगा" तुक लिख भेजी थी ।
(क्रमशः)

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