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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*निदंक बाबा बीर हमारा,*
*बिनही कौड़े बहै बिचारा ॥टेक॥*
*कर्म कोटि के कश्मल काटे,*
*काज सँवारै बिन ही साटे ॥१॥*
*आपण डूबे और को तारे,*
*ऐसा प्रीतम पार उतारे ॥२॥*
*जुग जुग जीवो निन्दक मोरा,*
*राम देव तुम करो निहोरा ॥३॥*
*निदंक बपुरा पर उपकारी,*
*दादू निंदा करै हमारी ॥४॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद ३३०)
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साभार ~ Sushila Khirwal
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✍🏻 लोग निंदा करें तो करने दो..
लोग निंदा करें तो करने दो.... सब लोगों को अपनी तरफ से छुट्टी दे दो, वे चाहे निंदा करें, चाहे प्रसंशा करें, जिसमे वे राजी हों, करें | आप सबको छुट्टी दे दो तो आपको छुट्टी(मुक्ति) मिल जाएगी !
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प्रशंसा में तो मनुष्य फँस सकता है, पर निंदा में पाप नष्ट होते हैं | कोई झूंठी निंदा करे तो चुप रहो सफाई मत दो | कोई पूछे तो सत्य बात कह दे | बिना पूछे लोगों में कहने की जरुरत नहीं |
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बिना पूछे सफाई देना(सत्य की सफाई देना) सत्य का अनादर है.... दूसरा आदमी हमें खराब समझे तो इसका कोई मूल्य नहीं है ! भगवान दूसरे की गवाही नहीं लेते !
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दूसरा आदमी अच्छा कहे तो आप अच्छे हो जाओगे ?.. ऐसा कभी नहीं होगा ! अगर आप बुरे हो तो बुरे ही रहोगे ... अगर आप अच्छे हो तो अच्छे ही रहोगे, भले ही पूरी दुनियां बुरी कहे ! लोग निंदा करे तो मन में आनंद आना चाहिए | एक संत ने कहा है –
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“मेरी निंदा से यदि किसी को संतोष होता है, तो बिना प्रयत्न के ही मेरी उन पर कृपा हो गयी ; क्योंकि कल्याण चाहने वाले पुरुष तो दूसरों के संतोष के लिए अपने कष्टपूर्वक कमाए हुए धन का भी परित्याग कर देते हैं(मुझे तो कुछ करना ही नहीं पड़ा)” ..
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हम पाप नहीं करते, किसी को दुःख नहीं देते, फिर भी हमारी निंदा होती है तो उसमें दुःख नहीं होना चाहिए, प्रत्युत प्रसन्नता होने चाहिए | भगवान की तरफ से जो होता है, सब मंगलमय ही होता है ! इसलिए मन के विरुद्ध भी बात हो जाए तो उसमें आनंद मनाना चाहिए |
—- स्वामी रामसुखदास जी..

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