#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*मन कौंन सौं लगि भूल्यौ रे ।*
*इन्द्रिनि के सुष देषत नीके*
*जैसैं सैंवरि फूल्यौ रे ॥(टेक)*
*दीपक जोति पतंग निहारै*
*जरि बरि गयौ समूल्यौ रे ॥१॥*
रे मन ! तूँ किसके अधीन होकर सन्मार्ग से भटक गया है । आज तूँ इन्द्रियों द्वारा प्राप्त संबल के पुष्प तुल्य विषय सुख को ही सर्वातिशायी मान बैठा है ॥टेक॥
जैसे पतंग दीपक की ज्योति को देखता हुआ पूर्णतः जल बल जाता है ॥१॥(क्रमशः)

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