बुधवार, 30 अक्टूबर 2019

गुरुदेव का अंग ११५/११९


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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)
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*असद् गुरु का अंग* 
*गुरु अपंग पग पंष बिन, शिष शाखा का भार ।* 
*दादू खेवट नाव बिन, क्यूँ उतरेंगे पार ॥११५॥* 
*दादू शंसा जीव का, शिष शाखा का साल ।* 
*दोनों को भारी पड़ी, होगा कौण हवाल ॥११६॥* 
*अंधे अंधा मिल चले, दादू बंध कतार ।* 
*कूप पड़े हम देखतां, अंधे अंधा लार ॥११७॥* 
असद्गुरु के लक्षण कह रहे हैं- सत्य असत्य का निर्णय करने वाले, ज्ञान तथा श्रद्धारूपी चरणों से रहित जो गुरु है वह पंगुल है । अतः अन्य शिष्यों को ज्ञानमार्ग तथा नैष्कर्म्यमार्ग में नहीं चला सकता । 
इस के अतिरिक्त उस के शिर पर शिष्यों का भार भी बहुत अधिक है । उस भार से वह नतमस्तक है, सैकड़ों आशापाशों से बंधा हुआ कामापभोग में लगा रहने से अनन्त चिन्ताओं से घिरा हुआ संसार सागर से पार जाने में स्वयं ही असमर्थ होने से शिष्यों को कैसे पार लगायेगा । 
उसकी गति तो अन्धे के पीछे चलने वाले की जो गति होती है वही होगी । उपनिषद् में लिखा है- 
“जो लोग अविद्या के चक्र में घूम रहे हैं और अपने को धैर्यशाली पण्डित मानते हैं । जैसे अन्धे पुरुष को रास्ते पर ले जाने वाला दूसरा अन्धा पुरुष स्वयं इधर-उधर भटकता है, वैसे ही अज्ञानी गुरुके द्वारा संचालित सकाम लोग नाना प्रकार की कुटिल गति को प्राप्त होकर संसार में भटकते रहते हैं ॥” 
महाभारत में लिखा है- 
“जो धर्म की निन्दा करते है, उनकी बुद्धि व्यामुग्ध हो गयी है । ऐसे गुरु स्वयं अपथ मार्ग से चलने के कारण दुःखी होते ही हैं; साथ ही अपने पीछे चलने वालों को भी दुःखी करते हैं” ॥११५-११७॥ 
*पर प्रबोध का अंग* 
*सोधी नहीं शरीर की, औरों को उपदेश ।* 
*दादू अचरज देखिया, ये जाहिंगे किस देस ॥११८॥* 
*दादू सोधी नहीं शरीर की, कहैं अगम की बात ।* 
*जान कहावैं बापुड़े, आवध लिए हाथ ॥११९॥* 
जो स्वयं ज्ञान एवं अनुभव से हीन होकर भी शिष्यों को उपदेश करते हैं न जाने उनकी क्या गति होगी? इस का वर्णन करते हैं । 
स्वभावसिद्ध राग-द्वेष की प्रबलता के कारण शास्त्रसंस्कार से हीन अत एव शौचाचार रहित शिष्यों को शौचाचार की शिक्षा देते हैं और आगे बढ़-बढ़ कर शास्त्र ज्ञान से शून्य होते हुए भी शास्त्र ज्ञान की बातें करते हैं । जब कि न उन में मनु आदि से प्रदर्शित शौचाचार ही है । ऐसे गुरुओं की क्या गति होगी ! उपनिषद् में लिखा है- 
‘जो कुत्सित कर्म करते हैं, वे कुत्सित योनि में जा कर कुत्ते, शूकर या चाण्डाल की योनि में जन्म लेते हैं ।” गीता में भी लिखा है- 
ऐसे आसुरी वृत्ति वाले जीव मुझ को प्राप्त किये विना ही मूढ लोग जन्म-जन्मान्तर में अधम गति को प्राप्त होते हैं ।” 
कहा है - 
“कलिकाल में सब लोग ऊपर से तो ब्रह्मज्ञान की बातें करेंगे, परन्तु भीतर से शिश्न और उदरवासना की पूर्ति का चिन्तन करते हुए आचारहीन होंगे” ॥११८-११९॥
(क्रमशः)

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