बुधवार, 30 अक्टूबर 2019

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*पूजा मान बड़ाइयां, आदर मांगै मन ।*
*राम गहै, सब परिहरै, सोई साधु जन ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ मन का अंग)*
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *नम्रता* 
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जगन्नाथपुरी का राजा प्रतापरूद्र अपने गुरु श्री चैतन्य महाप्रभु के दर्शन करने गया था । वे नृत्यानन्द में मग्न थे, इससे बोले नहीं थे । इसलिये राजा अपना अपमान जान कर पीछे लौट आया । नृत्य समाप्त होने पर लोगों ने राजा के आने तथा पीछे लौट जाने की बात कही । 
सब सुनकर महाप्रभु ने कहा - मैं उस अभिमानी से बोलन ही नहीं चाहता । जब राजा ने यह सुना तब वे अपना राजमद नष्ट करके, पुत्र को राज्य देकर विरक्त हो नम्र भाव से मन्दिर में नृत्य करने लगे । फिर एक दिन रथ यात्रा के समय नम्रता से नृत्य करते देखकर राजा को महाप्रभु ने अपना लिया ।
निर्मानी से रति करें, यह सन्तन की रीति ।
नृत्यत प्रतापरूद्र लख, चैतन्य मिले सप्रीति ॥१५६॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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