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*राम जपै रुचि साधु को, साधु जपै रुचि राम ।*
*दादू दोनों एक टग, यहु आरम्भ यहु काम ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *भक्त*
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कांचीपुरी के राजा को युवा न करने तथा उस का यश न वर्णन करने के कारण राजा ने भक्तिसार और कनिकृष्ण को देश निकाला दे दिया था। जाते समय भक्तिसार काच्चीपुरी के भगवान वरदराज के मंदिर में गये और प्रणाम करके कहा - 'भगवन ! यहां का राजा हमें यहां नहीं रहने देता इसलिये आपको प्रणाम करके हम जा रहे हैं ।
यह कह कर ज्यों ही वे चले तब भगवान की अचल मूर्ति भी उनके पीछे चल पड़ी । फिर राजा तथा प्रजा भक्तिसार और कनिकृष्ण के चरणों में पड़ कर उन्हें वहां ही रोका तब मूर्ति भी रुक गई ।
इससे सूचित होता है कि भगवान भक्त जाय वहाँ ही साथ जाते हैं ।
भक्त जाय तहँ जात है, उनके भी भगवान ।
भक्तिसार के संग किया, वरदराज प्रस्थान॥३६८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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