शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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८६ - करुणा । शँखताल
मुझ थीं कुछ न भया रे, 
यहु यों ही गयारे, पछतावा रह्या रे ॥टेक॥
मैं शीश न दीया रे, 
भर प्रेम न पीया रे, मैं क्या कीया रे ॥१॥
हौं रँग न राता रे, 
रस प्रेम न माता रे, नहिं गलित गाता रे ॥२॥
मैं पीव न पाया रे, 
कीया मन का भावा रे, कुछ होइ न आया रे ॥३॥
हूं रहूं उदासा रे, 
मुझै तेरी आशा रे, कहै दादू दासा रे ॥४॥
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खेद प्रकट कर रहे हैं, अहो ! मेरे से प्रभु प्राप्ति का कुछ भी साधन नहीं हुआ, यह जीवन व्यर्थ ही चला गया, अब केवल पश्चात्ताप ही रह गया है । 
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मैंने प्रभु के लिए अपना अहँकार रूप शिर नहीं दिया, न इच्छा भरके प्रभु - प्रेम रस का पान ही किया । 
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मैंने प्रभु प्राप्ति के लिए क्या किया ? कुछ नहीं । मैं प्रभु चिन्तन के रँग में अनुरक्त नहीँ हुआ, न प्रेम रस में मस्त हुआ, न शरीर का अध्यास ही नष्ट कर सका । 
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मैंने मन को प्रिय लगने वाले काम ही किये हैं, प्रभु में मन लगाने का साधन मुझ से कुछ भी न हो सका मैं प्रभु को प्राप्त न कर सका, 
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इसीलिए उदास रहता हूं, किन्तु हे प्रभो ! मैं यथार्थ कहता हूं, मुझे अब भी आशा है कि आप दर्शन अवश्य देंगे ।
(क्रमशः)

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