शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

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*दादू साचा हरि का नाम है, सो ले हिरदै राखि ।*
*पाखंड प्रपंच दूर कर, सब साधों की साखि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ भेष का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *भेष भक्ति* 
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लालाचार्य को अपने गुरु का उपदेश था कि भक्त भेष धारी को अपना बड़ा भाई जानना । वे गुरु के उपदेश के अनुसार ही वर्तते रहे । एक दिन माला तिलकधारी एक शव को नदी में बहते देख कर निकाल लाये और विमान बना कर बड़े उत्सव के साथ भगवत कीर्तन करते हुये नदी पर लेजा कर दाह क्रिया की । फिर भण्डारे के समय ब्राह्मणों को निमंत्रण दिया । उन लोगों ने यह कह कर कि न जाने किस जाति का मुर्दा था अस्वीकार कर दिया ।
लालाचार्य अपने गुरु के पास गये, गुरुजी उन्हें लेकर स्वामी रामानुजजी के पास गये । उन्होने कहा - 'लोग भगवत प्रसाद की महिमा नहीं जानते । तुम चिन्ता मत करो भोजन की सामग्री बनाओं । बैकुण्ठ से भगवत पार्षद आकर जीमेंगे ।' भोजन के समय भगवत् पार्षद आये ।
गांव के ब्रह्मण यह सोच कर कि जब ये लोग जीम कर बाहर आयेंगे तब इन्हें लज्जित करेंगे, द्वार पर खड़े हो गये । पार्षद उनका भाव जान गये और आकाश मार्ग से चले गये । जब ब्राह्मणों को ज्ञात हुआ तब वे लज्जित हो कर भीतर गये और पार्षदों की झूठी पतलें चाटने लगे । 
इससे सूचित होता है कि भेष भक्त भेष धारी को अपने से बड़ा समझता है उसका अनादर करने वालों को अपने से बड़ा समझता है और उनका अनादर करने वालों को अंत मे लज्जित होना पड़ता है ।
भेष भक्त जन भेषि को, मानत हैं बड़ भ्रात ।
लालाचारज भक्त की, परमप्रगट यह बात ॥२२६॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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