शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू सब जग मर मर जात है, अमर उपावणहार ।*
*रहता रमता राम है, बहता सब संसार ॥*
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साभार ~ Soni Manoj

तुम्हारे जीवन का दुख क्या है ? तुम्हारे जीवन का मौलिक दुख यही है कि जो रुकेगा नहीं, उसे तुम रोकना चाहते हो । तुम्हारे जीवन का मौलिक दुख यही है कि जो नहीं होगा, उसे तुम करना चाहते हो; जो हो ही नहीं सकता ।
जैसे तुम जवान हो, तो तुम सदा जवान रहना चाहते हो । यह हो ही नहीं सकता, तो दुखी होने वाले हो । दुख कोई तुम्हें दे नहीं रहा है । तुम अपना दुख पैदा कर रहे हो । जवान को बूढ़ा होना ही पडे़गा । इसमें कुछ बुराई भी नहीं है । प्रवाह है । जवानी का अपना सौंदर्य है; बुढ़ापे का अपना सौंदर्य है । और अगर बुढ़ापा तुम्हें कुरूप दिखाई पड़ता है, तो उसका एक ही कारण है कि यह बूढ़ा आदमी अभी भी जवानी को पकड़ने की कोशिश में होगा, जो इसके हाथ से छूट गयी है । इसलिए बुढ़ापे का निश्चिन्त भोग नहीं कर पा रहा है । 
नहीं तो बचपन का अपना सौंदर्य है; जवानी का अपना सौंदर्य है; बुढ़ापे का अपना सौंदर्य है । और ध्यान रखना : बुढ़ापे का सौंदर्य सबसे बड़ा सौंदर्य है, क्योंकि सबसे अंत में आता है । वह फूल आखिरी है । इसलिए तो इस देश में हम बूढ़े को आदर देते हैं । सब बूढ़े आदर के योग्य होते नहीं, इसे जानकर भी देते हैं । मान्यता भीतर यह है कि अगर कोई आदमी बचपन में पूरी तरह बचपन जीया हो, और जब बचपन चला गया, तो पीछे लौटकर न देखा हो; दो आंसू न बहाए हों उसके लिए । जवानी में पूरी जवानी जीया हो । और जब जवानी चली गयी, तो लौटकर न देखा हो । वह आदमी पूरा बुढ़ापा जीएगा । उसके बुढ़ापे में प्रज्ञा होगी, बोध होगा, समझ होगी । 
बच्चा तो कितना ही निर्दोष हो, फिर भी अबोध होता है । उसकी निर्दोषिता में एक तरह का अज्ञान होता है । उसकी निर्दोषिता अज्ञान की पर्यायवाची होती है । वह निर्दोष है, क्योंकि अभी उसने जाना नहीं है । 
जवानी जिद्दी होती है । जवानी सपनों से भरे हुए समय का नाम है । जवानी हजार सपने देखती है और हजार तरह की विपदाओं में पड़ती है । जवानी में हजार तरह की मूढ़ताएं सुनिश्चित है । जवानी एक तरह की मूढ़ता है । एक तरह का नशा है जवानी । एक तरह की मदहोशी है । जवानी में बड़ी गति है, और बड़ी त्वरा है, और बड़ी ऊर्जा है, लेकिन बड़ी विक्षिप्तता भी है । 
बुढ़ापे में जवानी की मूढ़ता गयी, विक्षिप्तता गयी, पागलपन गया । जवानी का जोश-खरोश गया । जवानी की उत्तेजना, ज्वर गया ।बचपन का अज्ञान गया । 
जीवन के सारे अनुभव बूढ़े को ताजा कर जाते, निखार जाते शुद्ध कर जाते । अब न वासना के अंधड़ उठते, न बचपन का अज्ञान खिलौनों में उलझाता । न जवानी की विक्षिप्तता पद, धन, प्रतिष्ठा की दौड़ में महत्वाकांक्षा जगाती । एक शांति उतरनी शुरू हो जाती है । 
बूढ़ा एक अपूर्व संतोष से भरने लगता है । सब, जो देखना था, देख लिया । सब, जो जानना था, जान लिया । अब घर लौटने लगता है । 
लेकिन हमारी तकलीफ यह है कि हममें से बहुत कम लोग बूढ़े हो पाते हैं । बूढ़े हों कैसे ? जो बूढ़े हैं, वे भी अभी जवानी का विचार करते रहते हैं; बचपन का विचार करते रहते हैं । कहते हैं : अरे ! वे दिन गजब के थे ! 
जो आदमी यह कहे कि जो दिन बीत गए, वे गजब के थे, समझना : यह आदमी बढ़ नहीं पाया । यह प्रौढ़ नहीं हुआ । क्योंकि अगर वे दिन गजब के थे, तो ये दिन और गजब के होने चाहिए, क्योंकि उन्हीं गजब के दिनों के ऊपर खड़े हैं । और जब ये दिन गजब के नहीं हैं, तो वे दिन भी गजब के नहीं हो सकते । जब बुढ़ापे में सौंदर्य नहीं है, तो जवानी कैसे सुंदर रही होगी ? अगर गंगा सागर में गिरने के करीब गंगा नहीं है, तो गंगोत्री में कैसे गंगा रही होगी ? 
बूढ़ा आदमी एक अभिनव सौंदर्य से भर जाता है । उसके सौंदर्य में एक शीतलता होती है; जवानी की गर्मी नहीं और बूढ़ा आदमी फिर सरल हो जाता है । लेकिन उसकी सरलता में बुद्धिमत्ता होती है - बच्चे का अज्ञान नहीं । बुढ़ापा अदभुत है । 
और जो आदमी ठीक से बूढ़ा हो गया - न पीछे लौटकर देखता जवानी को, न याद करता बचपन को - वह आदमी अब मृत्यु में भी उतने ही आनंद से प्रवेश कर सकेगा । क्योंकि बुढ़ापे का डर क्या है कि कहीं मैं बूढ़ा न हो जाऊं । वह डर यही है कि बुढ़ापे के बाद फिर आखिरी कदम मौत है । तो जवान जवानी में ही रुक जाना चाहता है । सब तरह की चेष्टाएं करता है कि किसी तरह पैर जमाकर खडा़ हो जाऊं; यह जो नदी की धार सब बहाए ले जा रही है, यह मुझे अपवाद की तरह छोड़ दे । तो दुख ही दुख होगा । 
सुख किसे होता है ? सुख उसे होता है, जिसकी जीवन से कोई मांग नहीं । जीवन जो करता है, उसे स्वीकार करने का भाव है । तथाता में सुख है । जवानी, तो जवानी में; बुढ़ापा, तो बुढ़ापा । आज किसी का प्रेम मिला, तो प्रेम; और कल प्रेम खो गया, तो उतना ही शांत भाव । आज महल थे, तो ठीक; कल झोपडे़ आ गए, तो ठीक । 
लेकिन दुनिया में दो तरह के मूढ़ हैं । अगर झोपड़ा है, तो वे चाहते हैं, महल होना चाहिए । और अगर महल है, तो वे चाहते हैं, झोपड़ा होना चाहिए । बड़ी मुश्किल है ! आदमी जहां है, वहां राजी नहीं है ! अगर झोपड़ा है, तो वे कहते हैं : जब तक महल न मिल जाए, मैं सुखी नहीं हो सकता । और महल मिल जाए, तो आदमी सोचने लगता है : महलों में कहां सुख है ? जब तक मैं भिखारी न हो जाऊं सड़क का, तब तक कहां सुख होने वाला है ! गरीब अमीर होने की सोचता है; अमीर गरीब होने की सोचता है । 
लेकिन तुम जो हो, जहां हो, उसको जीते नहीं । तुम जो हो, जिस क्षण में हो, जहां हो, जैसे हो, उस क्षण को पूरी समग्रता से जी लो । उससे अन्यथा की मांग न करो । जब वह क्षण चला जाएगा, कोई अड़चन न होगी । नया क्षण आएगा । नए क्षण के साथ नया जीवन आएगा । तो फूलों में यह भी संदेश है । और फूलों में यह भी संदेश है कि यह जीवन सदा रहने को नहीं है । आज है, कल नहीं हो जाएगा । इसलिए यह यात्रा है, मंजिल नहीं है । यहां घर मत बना लेना । 
सम्राट अकबर ने फतेहपुर सीकरी का नगर बसाया । बस तो कभी नहीं पाया । नगर बसते कहां । जब तक नगर बसा, तब तक अकबर के मरने के दिन करीब आ गए । फिर जा नहीं पाया । नगर सदा से बे-बसा रहा । लेकिन बनाया सुंदर नगर था । सुंदरतम नगरों में एक बनाया था । और एक-एक चीज बड़े खयाल से रखी थी । एक-एक चीज, एक-एक ईंट बड़े सोच-विचारकर रखी गयी थी । 
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जो पुल फतेहपुर सीकरी को जोड़ता है, उस पुल पर क्या वचन लिखे जाएं ? तो अकबर ने - सालों उस पर विचार किया था । नगरद्वार पर स्वागत के लिए क्या वचन लिखे जाएं ? फिर जीसस का प्रसिद्ध वचन चुना था । वचन है कि संसार एक सेतु है; इससे गुजर जाना; इस पर घर मत बना लेना ।

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