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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य ३. आद्यक्षरी - ५/६ =*
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*ति*रत न लागी बार कछु, *न*वका दियौ नांम ।*
*ही*न जाति हरि कौं मिलै, *दी*रघ पायौ धांम ॥५॥*
उन शरणागतों को, सन्तों की कृपा से, इस भवसागर को पार करने में कोई विलम्ब न लगा; क्योंकि सन्तों ने उन भक्तों को भगवन्नामरूप नौका का आश्रयण दे दिया था । वे भक्त हीन जाति के होते हुए, भजन प्रताप से, भगवत्स्वरूप हो गये । तथा उसी भजन प्रताप से उत्तम आवासस्थान भी उनके समीप ही प्राप्त कर लिया ॥५॥
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*या* मैं फेर न सार कछु, *आ*शा पूरइ आइ ॥*
*पु*न्य पाप के फन्द तें, *ते* सब दिये छुड़ाइ ॥६॥*
मेरे इस कथन में कुछ भी वाग्जाल न समझें । उनकी हृदय की भगवत्सामीप्य की इच्छा भी पूर्ण हो गयी । तथा भगवान् ने उन पर ऐसी कृपा की कि उन सबको सांसारिक पुण्य एवं पाप के द्वन्द्व से भी मुक्त कर दिया ॥६॥
(क्रमशः)

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