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*दादू अचेत न होइये, चेतन सौं चित लाइ ।*
*मनवा सूता नींद भर, सांई संग जगाइ ॥*
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साभार ~ Soni Manoj
🌻मनुष्यता का फूल🌻
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बुद्ध की कुटी का नाम था गंधकुटी । वहां फूल खिला था - मनुष्यता का फूल । याद रखना : तुम भी फूल हो : चाहे अभी कली में दबे हो, या हो सकता है, अभी कली भी पैदा न हुई हो; अभी किसी वृक्ष की शाखा में दबे हो । या हो सकता है, अभी वृक्ष भी पैदा न हुआ हो और किसी बीज में पड़े हो । मगर तुम भी फूल हो । और अपनी सुगंध को खोजना है । और अपनी सुगंध को मुखर करना है; अपनी सुगंध को प्रगट करना है । अभिव्यंजना देनी है । जो गीत तुम्हारे भीतर पड़ा है, उसे गाया जाना है । और जो नाच तुम्हारे भीतर पड़ा है, उसे नाचा जाना है ।
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नाचोगे, गाओगे, खिलोगे तो ही परितृप्ति है । उस परितृप्ति में ही, उस संतोष में ही एक सुगंध है । जो इन नासापुटों से नहीं पहचानी जाती । उसे पहचानने के लिए भी और नासापुट चाहिए । जैसे भीतर की आंख होती है, ऐसे भीतर के नासापुट भी होते हैं ।
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जरूरी नहीं कि तुम बुद्ध के पास जाओ, तो तुम्हें सुगंध मिले । तुम अगर अपनी दुर्गंध से बहुत भरे हो, तो शायद तुम्हें बुद्ध की सुगंध का पता भी न चले । तुम अगर अपने शोरगुल से बहुत भरे हो, तो तुम्हें बुद्ध का शून्य, और संगीत उस शून्य का कैसे सुनायी पडे़गा !
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गंधकुटी के चारों और जुही के फूल खिले थे । शास्ता ने उन भिक्षुओ को कहा : भिक्षुओ ! जुही के खिले इन फूलों को देखते हो ! ...... एक फूल तो बुद्ध का खिला था । मगर शायद अभी ये भिक्षु उसे नहीं देख सकते, इसलिए मजबूरी है और बुद्ध को कहना पड़ा : भिक्षुओ ! इन जुही के खिले फूलों को देखते हो ? ये सुवासित फूल, इन पर ध्यान दो । इन फूलों में कई राज छिपे हैं । एक तो कि ऐसे ही फूल तुम हो सकते हो । ऐसी ही सुवास तुम्हारी हो सकती है ।
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दूसरा : ये फूल सुबह खिलते हैं, सांझ मुर्झा जाते हैं । ऐसा ही यह मनुष्य का जीवन है । इसमें मोह मत लगाना । यह आया है, यह जाएगा । इस पर मुट्ठी मत बांधना । इसके साथ कृपणता का संबंध मत जोड़ना । यह तो आया है और जाएगा । जन्म के साथ ही मृत्यु का आगमन हो गया है ।
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ये फूल अभी कितने खुश दिखायी पड़ते हैं । सांझ मुर्झा जाएंगे; गिर जाएंगे धूल में और खो जाएंगे । ऐसा ही जीवन है । जो जीवन को पकड़ना चाहता है, वह सदा दुख में ही रह जाता है । जीवन को पकडो़ मत । यह पकड़ा जा नहीं सकता । बहता है, बहने दो । इसे समझो । यह ध्यान की आधारशिला है ।
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फूल में यह संदेश है : यहां सब बीत जाएगा । घर मत बना लेना । घर जो बना लेता है जीवन में, वही गृहस्थ है । और जो घर नहीं बनाता, वही संन्यस्त है ।
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संन्यास के लिए घर छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है । संन्यास के लिए घर बनाने की आदत छोड़ने की जरूरत है । संन्यास के लिए यहां कोई घर घर नहीं है; सभी सराय हैं । जहां ठहरे, वहीं सराय है । इसका यह मतलब नहीं है कि सराय को गंदा करो । कि सराय है, अपने को क्या लेना-देना इसका यह भी मतलब नहीं कि सराय कैसी भी हो, तो चलेगा । सराय को सुंदर करो । सुंदरता से रहो । लेकिन ध्यान रखो कि जो आज है, वह कल चला जायेगा । यह जीवन का स्वभाव है ।
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तो बुद्ध ने कहा : भिक्षुओ ! जुही के इन खिले फूलों को देखते हो ? ये सांझ मुर्झा जाएंगे । ऐसा ही क्षणभंगुर जीवन है । अभी है, अभी नहीं । इन फूलों को ध्यान में रखना भिक्षुओ ! यह स्मृति ही क्षणभंगुर के पार ले जाने वाली नौका है ।
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क्यों ? जो क्षणभंगुर को पकड़ना चाहता है, उसके भीतर विचारों का तूफान उठेगा । विचार हैं क्या ? क्षणभंगुर को पकड़ने की चेष्टाएं । क्षणभंगुर को थिर करने की चेष्टाएं । विचार हैं क्या ? घर बनाने की ईंटें । इसलिए जो क्षणभंगुर को पकड़ना नहीं चाहता, उसके भीतर विचार अपने आप क्षीण हो जाते हैं ।
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सार ही क्या है ? जब सब चला जाना है, तो इतने सोच-विचार से क्या होगा ? इतनी योजनाएं बनाने का क्या अर्थ है ? अतीत चला गया; भविष्य भी आएगा और चला जाएगा; और वर्तमान बहा जा रहा है । जी लो - बजाय योजनाएं करने के ।
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जैसे-जैसे विचार कम होते हैं, वैसे-वैसे ध्यान प्रगट होता है । ध्यान है निर्विचार चित्त की दशा । वही नौका है । वही पार ले जाएगी । विचारों ने बांध रखा है जंजीरों की तरह इस तट से । ध्यान ले जाएगा नौका की तरह उस तट पर ।
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भिक्षुओं ने फूलों को देखा और संकल्प किया : संध्या तुम्हारे कुम्हलाकर गिरने के पूर्व ही हम ध्यान को उपलब्ध होंगे, हम रागादि से मुक्त होंगे । फूलों ! तुम हमारे साक्षी रहो । भगवान ने कहा : साधु ! साधु !
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जब भी वे आशीष देते थे, तो यही उनका आशीष था : साधु ! साधु ! धन्य हो कि साधुता का जन्म हो रहा है । धन्य हो कि सरलता पैदा हो रही है । धन्य हो कि ध्यान की तरफ तुम्हारी दृष्टि जा रही है । धन्य हो कि साधना में रस उमग रहा है । साधु ! साधु ! ऐसा कहकर अपने आशीषों की वर्षा की ।

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