#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य २.गूढार्थ - १९/२० =*
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*कर्म काटि न्यारा भया बीसौं बिश्वा संत ।*
*रमैं रैनि दिन राम सौं जीवै ज्यौं भगवंत ॥२१॥*
साधुजन अपना कर्मबन्धन काट कर संसार से पूर्णत(बीसों विश्वा) पृथक् हो जाते हैं । वे दिन रात रामभजन में लगे रहते हैं, अतः वे भगवान् के समान ही अपना जीवनयापन करते हैं ॥२१॥
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*नाम हृदै निश दिन सुनै मगन रहै सब जांम ।*
*देषै पूरन ब्रह्म कौं वही एक बिश्रांम ॥२२॥*
भक्त को अपने हृदय में निशदिन(निरन्तर) भगवन्नाम के साथ रमण करना चाहिये । आठों पहर उसी नाम का ध्यान करना चाहिये । तभी वह उस पूर्ण ब्रह्म का साक्षात्कार कर उसमें लीन रह सकता है ॥२२॥
गूढार्थ का व्याख्यान संपन्न ॥२॥
॥इति गूढार्थ॥२॥
(क्रमशः)

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