बुधवार, 23 अक्टूबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*दादू पद जोड़े का पाइये, साखी कहे का होइ ।*
*सत्य शिरोमणि सांइयां, तत्त न चीन्हा सोइ ॥*
*कहबा सुनबा मन खुशी, करबा औरै खेल ।*
*बातों तिमिर न भाजई, दीवा बाती तेल ॥*
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साभार ~ satsangosho.blogspot.com
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ज्ञान और ज्ञान में बड़ा भेद है। एक तो ज्ञान है, जिसमें मुक्ति के फल लगते है; समाधि की सुगंध उठती है और एक दूसरा ज्ञान है, जिसमे न फूल खिलते हैं;न फल लगते हैं। जिस ज्ञान से समाधि की सुगंध न उठे, मनुष्य जान ले कि वह व्यर्थ और थोथा ज्ञान है। उससे जितनी जल्दी छुटकारा हो जाये, उतना अच्छा; क्योंकि मुक्ति के मार्ग में वह बाधा बनेगा।
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*धन भी इतनी बड़ी बाधा नहीं है, जितनी बड़ी बाधा थोथा ज्ञान है; क्योंकि धन से कोई साधन ही नहीं बनता, धन से मोक्ष की तरफ जाने का कोई साथ ही नहीं मिलता। इसलिए धन के कारण बाधा नहीं हो सकती। मोक्ष की तरफ जाने के लिये ज्ञान साधन है, इसलिए यदि गलत ज्ञान है तो ज्ञान ही बाधा बन जाएगा। संसार उतनी बड़ी रुकावट नहीं है, जितना शब्दों और शास्त्रों से मिला हुआ संगृहीत ज्ञान रुकावट हो जाता है।*
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ये कथा प्रासंगिक है। क्षिप्रा नदी के तट पर एक महापंडित रहते थे, दूर-२ तक ख्याति थी उनकी और प्रतिदिन वे क्षिप्रा को पार करके नगर के सबसे बड़े सेठ को कथा सुनाने जाया करते थे। एक दिन जब वे क्षिप्रा को पार कर रहे थे, एक घड़ियाल ने जल से सिर निकाल कर कहा कि मेरी भी अब जाने की उम्र हो गई है; आते-जाते मुझे भी कुछ ज्ञान दे दिया करें। और मुफ़्त नहीं लूंगा और घड़ियाल ने अपने मुंह में दबा हीरे का हार पंडित जी को दे दिया।
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पंडित जिस सेठ को कथा सुनाने जाते थे - उनको भूल कर - प्रतिदिन घड़ियाल को कथा सुनाने लगे। प्रतिदिन घड़ियाल उन्हें कीमती भेंट दिया करता था। कुछ दिनों के बाद घड़ियाल ने पंडित से कहा कि मुझे त्रिवेणी तक छोड़ आएं, एक पूरा मटका हीरा दूंगा। पंडित उसे त्रिवेणी लेकर गए और घड़ियाल ने त्रिवेणी पहुंच कर हीरों से भरा मटका पंडित को दे दिया।
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पंडित जब मटका लेकर चलने लगे तो घड़ियाल जोर से हंसा। उसे हँसते देखकर पंडित ने कारण पूछा? घड़ियाल ने कहा कि मनोहर नाम के धोबी के गधे से कारण पूछ लेना। पंडित को बड़ा दुःख हुआ - किसी और से कारण पूछें - इससे बड़ा दुःख का कारण और क्या हो सकता है?
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लेकिन पंडित को घड़ियाल ने समझाया कि गधा मेरा पुराना सत्संगी है। धोबी तो कपड़े धोने में लगा रहता था और मेरे अंदर ज्ञान कि किरण उस गधे ने ही जगाई। पंडित उदास होकर,बेचैन होकर सुबह ही गधे के पास पहुंच गया और पूंछा कि आखिर मामला है क्या? घड़ियाल हँसा क्यों ?
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वह गधा भी हंसने लगा। और कहा कि पिछले जन्म में मैं एक सम्राट का प्रधान मंत्री था। सम्राट की उम्र हो जाने के कारण, सम्राट के आदेश पर; सम्राट को त्रिवेणी लेकर गया। सम्राट को संगम ऐसा भाया कि वह तो वापस ही न लौटा और मुझसे कहा कि चाहो तो यहीं मेरे साथ रहो। या फिर एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं ले कर वापस चले जाओ। एक करोड़ स्वर्ण मुद्रा लेकर मैं वापस चला आया। *इसीलिये मैं गधा बन गया। और इसीलिये घड़ियाल हंसा।*

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