गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

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*सांई सरीखा सुमिरण कीजे, सांई सरीखा गावै ।*
*सांई सरीखी सेवा कीजे, तब सेवक सुख पावै ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *उदारता* 
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एक समय भगवान श्री कृष्ण के मुख से कर्ण की प्रशंसा सुनकर अर्जुन ने कहा - धर्मराज युधिष्ठिर से अधिक उदार तो कोई नहीं है फिर आप कर्ण की व्यर्थ प्रशंसा क्यों करते हैं ?
कृष्ण - कभी बता दूँगा ।
कुछ दिनों के पीछे अर्जुन को साथ लेकर ब्राह्मण भेष में युधिष्ठिर के पास जाकर एक मन चन्दन की सूखी लकड़ी की याचना की । उस दिन बर्षा बहुत हो रही थी कहीं से भी सूखी लकड़ी लाना कठिन था । नगर में खोज करने पर भी मन भर सूखा चन्दन नहीं मिला ।
युधिष्ठिर ने कहा - मन भर सूखा चन्दन नहीं मिल रहा आप कोई अन्य वस्तु चाहें तो शीध्र ही दी जा सकती है।
अन्य कुछ नहीं चाहिये, यह कहकर भगवान अर्जुन के साथ कर्ण के यहां गये, कर्ण ने उनका स्वागत करके कहा - कहिये क्या सेवा है भगवन ?
भगवान - एक मन चन्दन की सूखी लकड़ी इसी समय चाहिये । कर्ण ने धनुष बाण उठाया और बाण मारकर अपने महल के चन्दन के चौखट किवाड़ और पलँग आदि तोड़ कर सूखे चन्दन का ढेर कर दिया ।
यह देखकर अर्जुन समझ गये । क्योंकि यह चन्दन के किवाड़ आदि तो युधिष्ठिर के भी थे, परन्तु वह दे नहीं सके ।
नहिं उदार अर्थीन को, खाली जाने देत ।
चौखटादि हतकर्ण ने, दीन्हे शीध्र सचेत ॥१६८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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