बुधवार, 30 अक्टूबर 2019

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*पर उपकारी संत सब, आये इहि कलि मांहि ।*
*पीवैं पिलावैं राम रस, आप सवारथ नांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *निष्कामता* 
############################संत सुफियान सौरी के पास एक पुरुष कुछ भेंट लेकर आया, किन्तु उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया । पुरुष ने कहा - मैनें तो आपके मुख से कोई परमार्थ चर्चा भी नहीं सुनी, फिर भी आप यह पुजा क्यों नहीं लेना स्वीकार करते ? 
संत- तुम्हारा भाई यहां आकर सदा परमार्थ चर्चा सुनता है । अत: मुझे भय है कि तुम्हारी पूजा स्वीकार करने पर मेरा मन उससे अधिक प्रीति करेगा और उसमें स्वार्थ का भाव आ जायगा, और मेरी निष्कामना नष्ट हो जायेगी । 
इससे सूचित होता है कि - निष्कामी निजी स्वार्थ के लिये पर उपकार नहीं करते ।
निष्कामी निज स्वार्थहित, करत न पर उपकार ।
देने पर भी संत ने, भेंट करी इन्कार ॥३००॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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