गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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८८ - निसारुक ताल
दादू दास पुकारै रे, 
शिर काल तुम्हारै रे, शर साँधे मारै रे ॥टेक॥
यम काल निवारी रे, 
मन मनसा मारी रे, यहु जन्म न हारी रे ॥१॥
सुख नींद न सोई रे, 
अपना दुख रोई रे, मन मूलन खोई रे ॥२॥
शिर भार न लीजी रे, 
जिसका तिसको दीजी रे, अब ढील न कीजी रे ॥३॥
यहु औसर तेरा रे, 
पँथी जाग सवेरा रे, सब बाट बसेरा रे ॥४॥
सब तरुवर छाया रे, 
धन जौबन माया रे, यहु काछी काया रे ॥५॥
इस भ्रम न भूली रे, 
बाजी देख न छूली रे, सुख सागर झूली रे ॥६॥
रस अमृत पीजी रे, 
विष का नाम न लीजी रे, कह्या सो कीजी रे ॥७॥
सब आतम जाणी रे, 
अपणा पीव पिछाणी रे, यहु दादू वाणी रे ॥८॥
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हे लोगों ! हम पुकार कर कह रहे हैं, तुम्हारे शिर पर काल खड़ा है और तुम्हें लक्ष्य बना करके वय रूप धनुष द्वारा रात्रि - दिन रूप बाण मार रहा है । 
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तुम अपने मन और बुद्धि को जीत कर, अपने नाशक यम को हटाओ । यह मानव - जन्म व्यर्थ ही मत खोओ । 
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सुख की निद्रा में मत सोओ । जन्म - मरण रूप दु:ख निवृत्ति के लिए रोते हुये भगवान् से प्रार्थना करो । मन से अपने मूल कारण परमात्मा को दूर मत होने दो । 
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धन - धामादिक ममता का भार अपने शिर पर मत लो । जिस प्रभु के ये सब हैं, उसी को समर्पण कर दो । अब विलँब मत करो । 
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हे जीव रूप पथिको ! प्रभु के पास जाने को यह मानव शरीर का समय बहुत अच्छा है । अत: जीवन - रात्रि के समाप्त होने से पहले ही जाग कर चल पड़ो । 
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हम मोक्ष - मार्ग पर ही बस रहे हैं । यहां सदा रहने वाला कोई भी नहीं है । यह यौवन और धनादि सभी मायिक पदार्थ वृक्ष की छाया के समान चँचल हैं । 
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यह शरीर भी कच्चे घट के समान है । ये धनादि सदा रहेंगे, ऐसे भ्रम में पड़ कर भगवान् को मत भूलो । सँसार बाजी को देखकर मत प्रसन्न हो । 
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सुख - सिन्धु परब्रह्म के चिन्तन रूप झूले पर झूलो अर्थात् निरँतर चिन्तन करो । ज्ञानामृत रस का पान करो । विषय - विष का नाम भी मत लो । सँत, शास्त्रों ने जो आत्म - कल्याण के साधन कहे हैं, उनको करो । 
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सबको अपनी ही आत्मा समझ कर अपने प्रियतम परमात्मा को पहचानो । यही हमारी वाणी है ।
(क्रमशः)

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