गुरुवार, 24 अक्टूबर 2019

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*चन्द सूर सिजदा करैं, नाम अलह का लेइ ।*
*दादू जमीं आस्मान सब, उन पावों सिर देइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *दया* 
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आमेर से सीकरी जाते समय सन्तवर दादूजी अपने सात शिष्यों के सहित भिक्षा के समय दौसा पहुँचे । किसी स्थान पर ठहर कर भिक्षा करके गांव से बाहर जाने का विचार था किन्तु किसी ने भी ठहरने नहीं दिया । सब ने - आगे जाओ - आगे जाओ ही कहा ।
संत गांव के बाहर आ गये । वहां एक पीपल का वृक्ष था जो प्राय: सूखा था । कुछ डालियां हरी थी, उसके निचे सब संत ठहर गये और देर बाद ऊपर को देखा तो ज्ञात हुआ कि वह तो प्राय: सूखा है, इसके नीचे हम सबका धूप से बचना कठीन है । तब संत दादूजी उसकी ओर देखकर बोले - 'रामजी आप ही तो इन संतों का आश्रय देने वाले मिले और आप भी सूखे हैं।'
दादूजी के ऐसा कहने के पश्चात थोड़ी देर में ही पीपल संपूर्ण हरा हो गया । एक व्यक्ति अपने पशुओं को पानी पिलाकर गांव में ले जा रहा था । उसने यह घटना देखी और गांव में सूचना दी, फिर तो गांव से बहुत से मनुष्य आये और गांव में ले जाने का आग्रह किया किन्तु संत पुन: गांव में नहीं गये, वहां ही विश्राम करके आगे चल पड़े ।
संत दया से शुष्क भी, हरा होर तत्काल ।
करूणा कर पीपल हरा, कीन्हा दादूदयाल ॥१३४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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