गुरुवार, 24 अक्टूबर 2019

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*ज्यों ज्यों होवै त्यों कहै, घट बध कहै न जाइ ।*
*दादू सो सुध आत्मा, साधू परसै आइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ Tapasvi Ram Gopal
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *क्षमा* 
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एक संत मार्ग में जा रहे थे, उनके साथ एक दुष्ट स्वभाव व्यक्ति भी हो गया । वह उनको दुर्वचन कहता हुआ उनके साथ-साथ ही चलने लगा । संत चुपचाप सुनते चले । कुछ दूर आगे जाकर ठहर गये और बोले भाई ! तुम्हे जो कुछ भी कहना हो सो सब यहां ही कह लो, क्यों कि आगे मेरे सम्बन्धी रहते हैं, वे तुम्हारी बात सुनेंगे तो तुम्हे कष्ट देंगे ।
इससे सूचित होता है कि क्षमाशील गालियाँ देने वाले को भी हित की शिक्षा देता है ।
कटु वक्ता को भी कहें, क्षमाशील हित बात ।
कहना हो सो इह कहो, आगे नहीं कुशलात ॥२८३॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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