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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य ३. आद्यक्षरी - ७/८ =*
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*सुं*न्य मांहिं सूरय उदय, *द*श हूं दिशा प्रकाश ॥*
*र*है निरन्तर मग्न व्है, *कै*सौ जन्म बिनाश ॥७॥*
क्योंकि ऐसे उपासक के लिये शून्य में ही ज्ञान का प्रकाश हो जाता है । तथा वह प्रकाश ही दशों दिशाओं में फैल जाता है । उपासक उसी ज्ञान में मग्न होकर निरन्तर भगवद्भजन में लीन रहता है । उसके सन्मुख जन्म एवं मृत्यु की समस्या ही उत्पन्न नहीं होती ॥७॥
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*सि*द्ध भये सब साधि कै, *र*ही न कोऊ शंक ।*
*हा*रि जीत अब को करै, *थ*पै और ई अंक ॥८॥*
ऐसी साधना करने वाले सभी साधक अन्त में पूर्ण सिद्ध हो गये । इस विषय में उनके प्रति शंका या सन्देह नहीं रह गया । अब किसी की जय या पराजय का तो स्थान ही नहीं रह गया । न किसी अन्य कर्म बन्धन का ही अवकाश रह गया ॥८॥
॥ इति आद्यक्षरी संपन्न ॥
इस आद्यक्षरी काव्य से(प्रथम अक्षरों द्वारा) यह दोहा निकला –
*स्वामी दादू सत्य करि, भजे निरंजन नाथ ।*
*तिन ही हीया आयु ते, सुन्दर के सिर हाथ ॥*
(क्रमशः)

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