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*राम जपै रुचि साधु को, साधु जपै रुचि राम ।*
*दादू दोनों एक टग, यहु आरम्भ यहु काम ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *पाद सेवन भक्ति*
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प्रेमनिधिजी आगरा के ब्राह्मण थे । प्राय: भगवत् सेवा में ही लगे रहते थे । सेवा से छुट्टी मिलने पर भगवच्चरित्र की कथा भी करते थे।
दुष्टों ने बादशाह से कहा - 'प्रेमनिधि कथा के बहाने नगर की स्त्रियों को अपने यहां बुलवाता है, यह अनर्थ है ।' बादशाह ने बुलावाने को सिपाही भेजा । वे भगवत् सेवा के लिये जल लाने जा रहे थे किन्तु सिपाही के आग्रह से बादशाह के पास जाना पड़ा ।
बादशाह ने पुछने पर कहा - 'कथा में किसी को भी रोक नहीं होती किन्तु स्त्रियों को पाप दृष्टि से देखना ही पाप है ।' बादशाह - 'तुम्हारे लोगों ने ही खोटी खोटी बातें कही है, इसलिये इसका निर्णय कराना है ।' यह कह कर प्रेमनिधि को नजरबंध कर दिया ।
रात्रि को स्वप्न में बादशाह के इष्टदेव ने बादशाह से कहा - 'हमें प्यास लगी है ।' बादशाह - 'जल के घड़े भरे हैं पीजिये ।' इष्टदेव- 'तेरे घड़े का जल कौन पीयेगा ।' यह कहते हुये बादशाह को एक लात मार करके बोले - 'मेरी बात सुन ।' बादशाह - 'जो आज्ञा ।' इष्टदेव - 'हमें जो पानी पिलाने वाला है, उसे तुने कैद कर दिया है । अब हमें पानी कौन पिलावे ।'
यह सुनते ही बादशाह की आंख खुल गयीं और उसी समय प्रेमनिधिजी से क्षमा मांगकर उन्हें स्थान पर पहुंचा दिया । इससे सुचित होता है कि पद सेवक भक्त का कष्ट भगवान शीध्र ही दूर करते हैं ।
पद सेवक के कष्ट का, करते हरि झट नास ।
दिया प्रेमनिधि के लिये, बादशाह को त्रास ॥१२४॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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