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*सांई सरीखा सुमिरण कीजे, सांई सरीखा गावै ।*
*सांई सरीखी सेवा कीजे, तब सेवक सुख पावै ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *भक्त*
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दादूपंथी भक्त संत भक्तरामजी कोटा नगर में भिक्षा लाकर के मथुरेशजी के मंदिर की सीढियों पर बैठकर भगवान का आह्वान करते थे तब मथुरेश पात्र, स्थान आदि के अनुरूप श्वान का भेष धारण करके भक्तरामजी के साथ भोजन करते थे ।
मंदिर की सीढियों पर अन्न डाल कर कुत्ते के साथ खाना सीढियाँ बिगाड़ना मंदिर वालों को बुरा लगता था । इससे एक दिन उन लोगों ने भक्तरामजी तथा कुत्ते को डांटकर भगा दिया, पात्र फोड़ दिया । फिर मंदिर देखा तो रोटियों के टुकड़े तथा पात्र के खण्ड मंदिर में मिले और भगवान के हाथ तथा मुख अन्न से सने मिले ।
कहते हैं इस अनादर से भक्तरामजी गंगायचे चले गये तब मंदिर में भगवान की मूर्ति नहीं रही थी । फिर उन्हें राजी करके लाये तब पुन: मथुरेशजी की मूर्ति मंदिर में आ गयी। कारण भगवान भक्त के साथ ही चले गये थे ।
भक्त और भगवान में, अंतर रह कुछ नाँहि ।
भक्तराम मथुरेश सँग, जीमत कोटा माँहि ॥४७१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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