🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग गौड़ी १, गायन समय दिन ३ से ६*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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९३ - गुरु ज्ञान । त्रिताल
ऐसा रे गुरु ज्ञान लखाया,
आवै जाइ सो दृष्टि न आया ॥टेक॥
मन थिर करूँगा,
नाद भरूँगा, राम रमेँगा, रस माता ॥१॥
अधर१ रहूँगा,
करम दहूँगा, एक भजेँगा भगवन्ता ॥२॥
अलख लखूँगा,
अकथ कथूँगा, एक मथूँगा, गोविन्दा ॥३॥
अगह गहूंगा,
अकह कहूंगा, अलह लहूंगा, खोजन्ता ॥४॥
अचर चरूँगा,
अजर जरूँगा, अतिर तिरूँगा, आनँदा ॥५॥
यहु तन तारूँ,
विषय निवारूँ, आप उबारूँ, साधँता ॥६॥
आऊं न जाऊं,
उनमनि लाऊं, सहज समाऊं, गुणवँत्ता ॥७॥
नूर पिछाणेँ,
तेजहि जाणूं, दादू ज्योतिहि देखन्ता ॥८॥
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गुरु ज्ञान से होने वाले लाभों को बता रहे हैं, गुरुदेव ने ज्ञान द्वारा ऐसा समझा दिया है कि बारँबार जन्म ने और मरने वाले प्राणी की दृष्टि में वह परमात्मा नहीं आता ।
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मैं तो मन को स्थिर करके अनाहत नाद से कर्ण भरूँगा अर्थात् सुनूँगा । राम - भक्ति - रस में मस्त होकर राम में ही रमण करूँगा । मायिक१ गुणों से रहित रहूंगा । एकमात्र भगवान् का भजन करते हुए कर्मों को जलाऊंगा । मन इन्द्रियों के अविषय परब्रह्म को भजकर आत्मरूप से देखूँगा ।
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जो सर्वसाधारण से न कथन किया जाय, ऐसे ब्रह्म - ज्ञान को कथन करूँगा । वेद - वाणी से प्राप्त होने योग्य गोविन्द के स्वरूप का मनन करूँगा । जो ब्रह्म इन्द्रियादि से नहीं ग्रहण किया जाता, उसे ही स्वस्वरूप से ग्रहण करूँगा व अवर्णनीय ब्रह्म का स्वस्वरूप से वर्णन करूँगा, जो सर्व साधारण को प्राप्त नहीं होता, उसी ब्रह्म को साधना द्वारा खोजकर निर्विकल्प समाधि में प्राप्त करूँगा ।
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इस शरीर को पाप - ताप से तारूँगा । इस प्रकार अन्तरँग साधनों द्वारा अपना उद्धार करके अचर ब्रह्म में विचरूँगा । नहीं पचाने योग्य अनुभव को पचाऊंगा और दूस्तर सँसार को तैरकर परमानद प्राप्त करूँगा ।
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मैं किसी शरीर वो लोक में नहीं जाऊं - आऊंगा । उन्मनी मुद्रा द्वारा प्राण लय करके, अपने तेज स्वरूप को सम्यक् पहचान कर, आत्म - ज्योति को देखते हुये गुणवान् शरीर के सहित ही सहज - स्वरूप ब्रह्म में समा जाऊंगा ।
इस अपने निश्चय के अनुसार ही अन्त समय में महाराज का स्थूल शरीर भी लय हो गया था । यह कथा दृष्टांत सुधा - सिन्धु तरँग ९ - २३८ में देखो ।
(क्रमशः)

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