शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

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*विरह वियोगी मन भला, सांई का वैराग ।*
*सहज संतोषी पाइये, दादू मोटे भाग ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *जिज्ञासा* 
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शुभ सन्तति नामक राजा के तीन पुत्र तत्वदृष्टि, अदृष्टि, तर्क दृष्टि आत्मतत्व की जिज्ञासा लेकर घर से निकले पड़े और गुरु की खोज करते हुये गंगा तट पर एक स्थान में किसी संत के पास छ: महीने तक परम सहनशीलता से रहे तब संत ने उन पर कृपा की ।
जब तक उनकों अपने स्वरूप का भली - भाँतिबोध नहीं हुआ, तब तक उनको सन्तोष नहीं हुआ । इससे सूचित होता है कि जिज्ञासु को बिना जाने सन्तोष नहीं होता ।(विचार सागर द्वारा)
बिन जाने जिज्ञासु जन, लेते नहीं सन्तोष ।
तत्वदृष्टि आदिक रहे, छ: मास परम अरोप ॥३२१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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