शनिवार, 2 नवंबर 2019

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*दादू एक सुरति सौं सब रहैं, पंचों उनमनि लाग ।*
*यहु अनुभव उपदेश यहु, यहु परम योग वैराग ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ लै का अंग)*
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *एकाग्रता* 
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एक संत का कहना है कि मैंने एक नगर में एक युवा और वृद्ध दो पुरुष बहुत एकाग्र मन से सुने थे । अत: मैं उनके दर्शन करने के लिये गया और तीन बार वन्दना की किन्तु वे कुछ न बोले । तब मैंने भगवान की शपथ दिला करके कहा कि - मेरा अभिवादन तो स्वीकार करो - यह सुनकर युवा पुरुष ने सिर उठा करके कहा कि - इस संसार में थोड़े ही दिनों का जीवन है, अत: हमें अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर लेना चाहिये । किन्तु ज्ञात होता है तुम्हें अपने कार्य की कुछ भी सुधि नहीं है । इसलिये हमारे साथ अभिवादनादि के द्वारा जान-पहचान करना चाहते हो । 
यह कहकर उसने फिर अपना सिर निचे कर लिया । मुझे प्रथम तो भुख-प्यास सता रही थी, किन्तु उस एकाग्र मन युवा पुरुष की बात सुनकर भूख-प्यास को तो भूल गया और मेरी सब वृतियां एकाग्र हो गई । रात्रि भर वहां ही खड़ा रहा । इससे सूचित होता है कि एकाग्र मन पुरुष के संग से भी एकाग्रता हो जाती है ।
किये संग एकाग्र का, एकाग्रता हो जात ।
एक संत ने कही है, अनुभव कर यह बात ॥३१८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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