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*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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११४ - विनती । पँचम ताल
बाबा ! मन अपराधी मेरा, कह्या न मानै तेरा ॥टेक॥
माया मोह मद माता, कनक कामिनी राता ॥१॥
काम क्रोध अहँकारा, भावै विषय विकारा ॥२॥
काल मीच१ नहिं सूझै, आतम राम न बूझै ॥३॥
सम्रथ सिरजनहारा, दादू करै पुकारा ॥४॥
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मन - सुधारार्थ प्रभु से विनय कर रहे हैं, हे पितामह परमेश्वर ! यह मेरा मन बड़ा अपराधी है ।
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मायिक मोह - मद से मतवाला हो, कनक - कामिनी में अनुरक्त रहता है ।
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इसे काम, क्रोध, अहँकार और विषय - विकार ही प्रिय लगते हैं ।
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जाता हुआ आयु का समय और आने वाली मृत्यु१ इसे नहीं दीखती । यह अपने आत्म - स्वरूप राम को समझने का प्रयत्न नहीं करता ।
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अत: हे समर्थ सृष्टि - कर्ता परमेश्वर ! मैं आपके आगे प्रार्थना करता हूं, आप इसे ठीक करें ।
(क्रमशः)

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