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*ज्यों यहु काया जीव की, त्यों सांई के साध ।*
*दादू सब संतोषिये, मांहि आप अगाध ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *सेवा*
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चतुरदास गुरु के परम भक्त थे । गुरु को भगवतरूप ही मानते थे । वे अन्त में अपना सब घरबार गुरु के अर्पण करके व्रजमण्डल में जाकर विचरने लगे थे ।
एक समय नन्दगांव मे मान सरोवर पर भूखे-प्यासे पड़े थे । बारह वर्ष की अवस्था के लड़के के रूप में श्रीकृष्ण ने दूध का कटोरा लाकर उन्हें दिया । लड़के के पुन:दर्शन के लोभ से चतुरदासजी ने उससे जल भी मांगा । लड़का जल लेकर नहीं आया तब चतुरदासजी व्याकुल होकर पड़ गये । नींद आते ही स्वप्न में श्रीकृष्ण ने कहा - "जल की कोई आवश्यकता नहीं, तुम्हें सब व्रजवासियों से दूध मिलता रहेगा ।"
चतुरदासजी को सब ब्रजवासी दूध देने लगे । अब भी उनकी शिष्य परम्परा को ब्रज में सब जगह दूध मिलता है । इससे सुचित होता है कि गुरु सेवा से महान् उन्नति होती है, भगवान भी गुरु भक्त का मान करते हैं।
##अरिल##
गुरु इच्छा अनुकूल गमन गुरुसेव है,
गुरु सेवा का लाभ प्राप्ति विभुदेव है ।
गुरु सेवा से हीन नाम ही मात्र है,
शिष्यपना वह हो न बोध का पात्र है ॥
गुरु सेवा संसार में, उन्नति हेतु महान ।
गुरु सेवा से ही हुआ, चतुरदास का मान ॥३२८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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