शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

= १०३ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷

🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷

🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏

*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*

साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥

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१०३ - तर्क चेतावनी । राज विद्याधर ताल
मन मति हींण१ धरै, 
मूरख मन कछु समझत नाहीं, ऐसे जाइ जरै ॥टेक॥
नाँव विसार अवर चित राखै, कूड़े काज करै ।
सेवा हरि की मन हूं न आणै, मूरख बहुरि मरै ॥१॥
नाँव संगम कर लीजै प्राणी, जम तैं कहा डरै ।
दादू रे जे राम संभारै, सागर तीर तिरै ॥२॥
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तर्क - पूर्वक सावधान कर रहे हैं - मूर्ख - मन के मानव कुछ भी नहीं समझते, मन में नीच१ बुद्धि धारण करके व्यर्थ ही विषयों में जाकर चिन्ता द्वारा जलते हैं । 
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भगवान् के नाम को भूलकर अन्य नीच भावना ही चित्त में रखते हैं और बुरे काम करते हैं । मन से भगवान् की भक्ति नहीं करते, इसीलिये मूर्ख लोग बारम्बार मरते हैं । 
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प्राणी ! यम से क्यों डरता है ? भगवन्नाम - चिन्तन द्वारा भगवान् का साथ करले, फिर यम तेरा कुछ न बिगाड़ सकेगा । अरे ! यदि तू राम का स्मरण करेगा तो सँसार - सागर को तैर कर, उसके अगले तीर पर प्रभु को जा मिलेगा ।
(क्रमशः)

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