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श्रीदादूवाणी भावार्थदीपिका भाष्यकार - ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरणवेदान्ताचार्य ।
साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ
*हस्तलिखित वाणीजी* चित्र सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग. २)*
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*नाम चेतावनी*
*राम तुम्हारे नांव बिन, जे मुख निकसै और ।*
*तो इस अपराधी जीव को, तीन लोक कित ठौर ॥१०॥*
हे राम ! यदि कोई आप के नाम को भूलकर अपनी जिव्हा से संसार की ही स्तुति निन्दा करता है तो वह महान् अपराधी है त्रिलोकी में उसकी कहीं भी गति नहीं है । कहा है-
“हे अर्जुन ! यदि कोई यदृच्छा से भी मेरा नाम नहीं लेता तो ऐसा मानव दर्शन करने योग्य भी नहीं है ॥१०॥
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*छिन-छिन राम संभालतां, जे जीव जाइ तो जाय ।*
*आतम के आधार को, नाहीं आन उपाय ॥११॥*
क्षण-क्षण में भगवान् श्रीराम का स्मरण करते हुए यदि जीव का प्राण भी चला जाय तो कोई चिन्ता की बात नहीं, क्योंकि ऐसी मृत्यु सभी प्राणियों को नहीं मिलती गीता में लिखा है-
“मृत्यु के समय जो साधक योगबल से अपने प्राणों को भृकुटिमध्य में स्थिर करके अचल मन से भक्ति करता हुआ अपने प्राणों को त्यागता है वह उस दिव्य परम पुरुष को पा लेता है ।”
श्रुति भी कहती है-
“जो अन्तकाल में जैसी कामना करता है वह उस साधक को संकल्पमात्र से प्राप्त हो जाती है । और वह उस से सम्पन्न हो जाता है” ॥११॥
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*स्मरण माहात्म्य*
*एक मुहूर्त मन रहै, नांव निरंजन पास ।*
*दादू तब ही देखतां, सकल कर्म का नास ॥१२॥*
यदि साधक मन राम नाम स्मरण में एक मुहूर्त भी स्थिर हो जाय तो सभी संचित कर्मों का नाश हो जाता है । प्रारब्ध कर्म तो भोग से ही नष्ट होते हैं । लिखा है -
“एक मुहूर्त भी यदि आलस्य त्यागकर नारायण का ध्यान करता है तो वह सिद्धि प्राप्त कर लेता है । यदि निरन्तर उसी के ध्यान में मग्न रहता है तो उसका तो अवश्य कल्याण होता है ।”
“खट्वांग नाम राजर्षि अपनी आयु की इयत्ता(सीमा) को जानकर एक ही क्षण में सब कुछ सांसारिक भोग त्यागकर हरि की अभयपद शरण में चला गया ।”
“प्रमत्त होकर बहुत अधिक जीवित रहने से भी क्या लाभ ! यदि जीता हुआ प्राणी एक मुहूर्त भर भी स्वकल्याण हेतु यत्न करता है तो उस का वह जीवन का भाग ही श्रेष्ठ है ।”
धर्म करते हुए यदि धन नष्ट हो जाय, तप करते हुए यदि यौवन समाप्त हो जाय, ईश्वर का भजन करते करते यदि प्राण भी चले जाँय तो इन सब को गया हुआ नहीं समझना चाहिये । क्योंकि ये सब भगवान् के दिव्य धाम चले जाते हैं ॥१२॥
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*सहजैं ही सब होइगा, गुण इन्द्रिय का नास ।*
*दादू राम संभालतां, कटैं कर्म के पास ॥१३॥*
हे शिष्य ! रामनाम का जाप करने वालों के सत्त्वादि गुणों की शुद्धि, मन की पवित्रता, इन्द्रियविजय, कर्मपाश का नाश-वे सब अनायास ही भगवत्कृपा से हो जाते हैं ।
-श्रुति में कहा है-
“उस परमात्मदेव को जानकर जीव सभी पाशों(बन्धनों) से मुक्त हो जाता है ।”
“हृदय की ग्रन्थि, सर्व प्रकार के संशय, तथा सब कर्मों का, उस परात्पर ब्रह्म को जान लेने से, नाश हो जाता है” ॥१३॥
(क्रमशः)
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