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*एक शब्द सब कुछ किया, ऐसा समर्थ सोइ ।*
*आगै पीछे तो करै, जे बलहीना होइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ शब्द का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *ईश्वर*
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प्रथम सृष्टि इक साथ हो, क्रम से कभी न होय ।
अकबर का संशय हरा, दादू ने कथ सोय ॥६०॥
सीकरी शहर में अकबर बादशाह ने संतवर दादूजी से ये प्रश्न किये थे -
अव्वल आब कि वायु प्रकाशा, प्रथम जमी या भया अकाशा ॥
ऐरन प्रथम कि भया हतौरा, नारि -पुरुष का कहिये ब्यौरा ॥
(श्री दादूजन्मलीला परची)
अकबर का प्रश्न है कि -
जैसे ऐरन, हतौड़ा और संडासी बनाने में अन्य ऐरनादिक की अपेक्षा होती है, वैसे ही संसार के नारी पुरुषादिक भी अपनी उत्पत्ति में अन्य नारी पुरुषादिक की अपेक्षा रखते हैं । अर्थात प्रथम पुरुष हुआ तो नारी बिना कैसे हुआ और प्रथम नारी हुई तो पुरुष बिना कैसे हुई इत्यादि
संशय मन में होता है, आप कृपा कर इसे दूर कीजिये ।
दादूजी -
"एक शब्द में सब किया, ऐसा समर्थ सोय ।
आगे पीछे सो करे, जो बल हीना होय ॥"
ईश्वर ने मैं एक से बहुत हो जाऊँ इस एक शब्द से ही अपने अनन्त आकार बनाकर संसार की सृष्टि की है । कारण वह सर्व शाक्तिमान है । अकबर को इस उत्तर से सन्तोष हुआ । उसने संत को धन्यवाद देते हुए प्रणाम किया तथा उनहें अपना गुरु भी माना ।
इससे सूचित होता है कि सृष्टि एक साथ ही होती है क्रम से नहीं ।
"अकबर पूछत फकरा, तीन बात अड़ी।
ऐरन हतौड़ी संडासी, तीनो पहले कौन घड़ी ॥"
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###
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