शनिवार, 16 नवंबर 2019

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*सेवक बिसरै आप कौं, सेवा बिसरि न जाइ ।*
*दादू पूछै राम कौं, सो तत्त कहि समझाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी ​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ४* *अर्चना भक्ति* 
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कर्मानन्दजी जाति के चारण थे, वे तीर्थयात्रा करने निकले थे । भगवान सिंहासन को शिर पर और हाथ में एक दो शाखा वाली छड़ी रखते थे । जहां ठहरते वहां छड़ी को भूमी में गाड़ कर सिंहासन उस पर लटका देते थे ।
एक दिन भजन में मन रहने के कारण छड़ी भूल करके आगे चल पड़े । फिर जहां ठहरे तब छड़ी नही है यह ज्ञात हुआ । अब सिंहासन किस पर लटकाये । पीछे जाकर छड़ी लाना कठिन था । 
दिन भर की यात्रा थक चुके थे । प्रेम पूर्वक भगवान से प्रार्थना करने लगे - 'भगवन ! सेवक की किसी कार्य में भूल हो जाय तो स्वामी का अधिकार होता है कि उसे याद करा दे । फिर अन्त:करण के प्रेरक भी तो आप ही है । इसलिये छड़ी भूलने का दोष किसका है यह आप ही विचार लेवें।' यह प्रेमपूर्ण प्रार्थना सुनकर तत्काल भगवान ने छड़ी लाकर उनके हाथ में दे दी । 
इससे सूचित होता है कि अपने पूजक का कार्य करने में देरी नहीं करते ।
निज पूजक के कार्य में, देर करे हरि नाँहि ।
कर्मानन्द की छड़ी झट, लायधरी कर माँहि ॥१४१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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