बुधवार, 13 नवंबर 2019

= *दया निर्वैरता का अंग ९१(२५/२८)* =

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*दादू गला गुस्से का काटिये, मियाँ मनी को मार ।*
*पंचों बिस्मिल कीजिये, ये सब जीव उबार ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*दया निर्वैरता का अंग ९१* 
घुण हांडी में घुल गया, माँखी सहनक१ माँहिं । 
रज्जब खाय कबूल२ कर, मैं मुरदारी३ नाँहिं ॥२५॥ 
हांडी में घुण घुल जाता है, प्रत्यक्ष में मक्खी१ पड़कर मर जाती है, उस अन्न को खा जाता है और स्वीकार२ भी करता है, फिर भी कहता है कि मैं मुरदा३ खाने वाला नहीं हूं, यह कैसी बात है । 
मछली किन तकबीर की, घुणा किन किये हलाल१ । 
अंडे किन विस्मल किये, सब खाने का ख्याल ॥२६॥
मच्छी को किसने तकबीर की । (मारते समय कौन अल्ला हो अकबर बोलता है)? घुणों को कौन ठीक१ करके खाता है ? अंडों को कौन बिस्मला(बलि विधान) करके खाता है ? सब खाने का ध्यान रखते हैं । 
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अजाजील१ अरू आदम२ ही, देख अदावत आदि । 
द्वैष लागि द्वै दिशि विमुख, जन्म गमाया बादि ॥२७॥
देखो, शैतान१ और मानव२ का वैर प्रथम से ही चला आ रहा है, शैतान मानव को प्रभु की और नहीं जाने देता बहकाकर संसार में ही फँसाता है, इस द्वैष में पड़कर परमार्थ तथा व्यवहार दोनों से ही विमुख रहकर शैतान ने अपना जन्म व्यर्थ ही खो दिया है । अत: निर्वैर ही रहना चाहिये । 
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रामचन्द्र रामानन्द हीं, वैर बाण भई मींच । 
तो रज्जब द्वैष न राखिये, समझी मनवा नींच ॥२८॥
रामचन्द्र ने बाली के बाण मारा था, उसी वैर से बाली ने व्याध रूप में जन्म लेकर राम के अवतार कृष्ण के बाण मारा था, उसी से कृष्ण परम धाम को गये थे । लक्ष्मण ने मेघनाथ को मारा था, उसी बैर से लक्ष्मण के अवतार रामनन्द को मेघनाथ ने पठाण के रूप में जन्म के मारा था । अत: हे नीच मन ! समझ ले किसी से भी वैर नहीं रखना । 
(क्रमशः)

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