बुधवार, 13 नवंबर 2019

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🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
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१०१ - पँजाबी भाषा । पँचम ताल
आ वे सजणाँ आव, शिर पर धर पांव ।
जांनी१ मैंडा२ जिन्द३ असाडे४, 
तूँ रावैंदा५ राव वे, सजणाँ आव ॥टेक॥
इत्थाँ६ उत्थाँ७ जित्थाँ८ कित्थाँ९, 
हूं जीवां तो१० नाल११ वे ।
मीयां१२ मैंडा आव असाडे, 
तूँ लालों शिर लाल१३ वे, सजणाँ आव ॥१॥
तन भी डेवां१४ मन भी डेवां, 
डेवां पिंड पराण वे ।
सच्चा साँई मिल इत्थाँई, 
जिन्द करां कुरबाण वे, सजणाँ आव ॥२॥
तू पाकों१५ शिर पाक वे सजणाँ, 
तू खूबों१६ शिर खूब ।
दादू भावै सजणाँ आवै, 
तूँ मिट्ठा महबूब१७ वे, सजणाँ आव ॥३॥
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हे सज्जन ! आइये, आइये, मेरे शिर पर अपना कृपा - पैर रखिये । आपही मेरे२ सच्चे मित्र१ हैं । हम वियोगी - जनों के आप ही जीवन३ और राजाओं५ के राजा हैं 
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इस६, लोक में वो परलोक७ में जहां८ कहीं९ भी हम रहें किन्तु आपके१० साथ११ रह कर ही जीवित रह सकेंगे । हे मेरे स्वामिन्१२ पधारिये । आप ही हमारे४ प्रियतमों के भी शिरोमणि प्रियतम१३ हैं । 
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हम अपना इन्द्रिय रूप तन, मन, स्थूल शरीर और प्राण भी आपके समर्पण१४ करते हैं । हे सच्चे स्वामिन् ! इस वर्तमान शरीर में ही मिलिये । हम आप पर अपना जीवन निछावर करते हैं । 
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आप ही पवित्रों १५ के शिरोमणि पवित्र, श्रेष्ठों१६ के शिरोमणि श्रेष्ठ हैं । हमको प्रिय लगते हैं । आप अति मधुर और हमारे प्रेम - पात्र१७ हैं । अत: हे सज्जन ! अवश्य शीघ्र ही पधारिये ।
(क्रमशः)

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