#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= (बृक्ष बंध. १०/२) =*
.
*श्रोत्र तुचा दृग नासिका, जिह्वा है तिन मांहिं ॥*
*ज्ञान सु इन्द्रिय पंच ये, भिन्न-भिन्न बर्त्ताहिं ॥१५॥*
कर्ण, त्वचा, मुख, नासिका तथा जिह्वा – ये पाँच ज्ञान-इन्द्रिय भिन्न भिन्न रूप से पाँच स्कन्ध माने गये हैं ॥१५॥
.
*वाक्य पानि अरु चरन पुनि, गुदा उपस्थ जु नाम ॥*
*कर्म सु इन्द्रिय पंच ये, अपने अपने काम ॥१६॥*
वाणी, पाणि, पाद, गुदा एवं उपस्थ(मूत्रेन्द्रिय) – ये पाँच कर्मेन्द्रिय मानी गयी हैं ॥१६॥
.
*शब्द स्पर्श जु रूप रस, गंध सहित मिलि पुष्ट ॥*
*मम बुद्धि चित्त अहं तहां, अंतहकरन चतुष्ट ॥१७॥*
शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं गन्ध, तथा वहाँ मन, बुद्धि, चित्त एवं अहंकार – ये अन्त:करण चतुष्ट्य ॥१७॥
इन सब को मिला चौबीस(२४)तत्त्वों वाला यह अनुपम विश्ववृक्ष बनता है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें