शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

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*दादू हौं बलिहारी सुरति की, सबकी करै सँभाल ।*
*कीड़ी कुंजर पलक में, करता है प्रतिपाल ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी ​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *श्रद्धा विश्वास* 
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नवाब दौलतखां की कीर्ति सुनकर एक सिंह वाला फकीर फतेहपुर आया । शहर से कुछ दूरी पर पश्चिम की ओर एक बालू के टीले पर ठहर गया । वहां की जनता ने उससे भोजन का आग्रह किया । उसने कहा - मैं मेरे सिंह के भोजन किये बिना भोजन नहीं करता, और सिंह को गो - मांस को छोड़ कर अन्य का मांस नहीं खाता । यह सुनकर हिन्दू प्रजा सहम गई ।
जब नबाब ने यह सुना तो अपनी प्रजा से कहा - आज हमारे सामने यह धर्म संकट है, फकीर का भूखा रहना भी ठीक नहीं । और सिंह को गौ देना भी अनुचित है, किन्तु मेरा विश्वास है कि ईश्वर हमारी सहायता करेंगे ।
हम फकीर के कथानानुसार एक तीन वर्ष की बछिया लेकर फकीर के पास चलें । प्रजा ने भी नवाब की बात मान ली, दूसरे कुछ मुख्य व्यक्तियों तथा गौ को साथ लेकर नवाब फकीर के पास गया और बोला - मेरी प्रजा अधिकतर हिन्दू है, गौ सिंह को देने से उसे दु:ख होगा । इसलिए सिंह के लिये आप किसी अन्य पशु की आज्ञा दें ।
जब फकीर ने किसी प्रकार भी नहीं माना, तब नवाब ने ईश्वर का ध्यान करके गौ की पीठ पर तीन थप्पी लगाई और फकीर ने सिंह को गौ भक्षण करने की आज्ञा दी । सिंह उठा, किन्तु गौ के समीप न जा सका, पीछे ही आकर बैठ गया । 
इस प्रकार तीन बार हुआ, तब फकीर ने कहा - ऐ नवाब ! जैसा मैनें सुना था वैसा ही पाया । वास्तव में तुम नवाब होते हुवे भी उच्च कोटि के संत हो । इस घटना से प्रजा को बड़ा आनन्द हुआ । नवाब का ईश्वर पर दृढ विश्वास था, इसी से सिंह गौ को नहीं मार सका ।
अपना दृढ विश्वास जहँ, तहां अकाज न होय ।
दौलतखां ढिंग सिंह ने, गाय हती नहिं कोय ॥२२९॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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