शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

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*मन चित मनसा आत्मा, सहज सुरति ता मांहि ।*
*दादू पंचों पूर ले, जहँ धरती अंबर नांहि ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी ​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *एकाग्रता* 
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संत शिवली ने एक संत को देखा कि उसके शरीर के रोम भी स्थिर है । वे सदा भगवत् ध्यान में ही विमग्न रहते थे । शिवली ने उनसे पूछा - आपने एकाग्रता किससे सीखी ?
संत - मैनें एक दिन बिल्ली को चूहे के बिल के पास इससे भी अधिक स्थिर देखा था । अत: मैनें उसी से यह एकाग्रता सीखी है ।
इससे सूचित होता है कि विशेष एकाग्रता होने पर शरीर के रोम तक भी नहीं हिलते ।
देह रोम की एकाग्र के, हिलते है लव नांहि ।
लख इकको अतिचकित भये, शिवली मन के मांहि॥३१६॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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