मंगलवार, 12 नवंबर 2019

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*सेवक की रक्षा करै, सेवक की प्रतिपाल ।*
*सेवग की वाहर चढै, दादू दीन दयाल ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ बिनती का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *ईश्वर* 
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क्षीरोदधि के बीच एक विशाल द्वीप है, उसमें वरुणजी का ऋतुमत् नामक क्रीड़ावन है । महर्षि अगस्त्य को उत्थान नहीं होने से ऋषि के शाप से राजा सुद्युमन हाथी बनकर उसमें विचरते थे । 
एक दिन पानी पीने सरोवर पर गये, गन्धर्व श्रेष्ठ हूहू महर्षि देवल के शाप से ग्राह बनकर उस सरोवर में रहते थे । उसी ग्राह ने गजराज को पकड़ लिया था । बहुत समय तक युद्ध चलता रहा । 
अन्त में गजराज ने शक्ति हीन होने पर भगवान् की शरण होकर रक्षा के लिये भगवान् को पुकारा । भगवान् ने हरिमेधस ऋषि की पत्नी हरिणी में अवतार धारण किया था । वे गरुड़ारूढ़ होकर दौड़ पड़े । 
गरुड़ की गति मन्द जान कर गरुड़ को छोड़ के स्वयं पैरों से ही भाग के सुदर्शन चक्र से ग्राह को मार के गजराज की रक्षा की थी ग्राह गन्धर्व हूहू तथा गजराज भगवान् का पार्षद बन गये ।
आर्त्त शब्द सुन भक्त का, हरि दौड़त तत्काल ।
बचा लिया गजराज को, गरुड़ छोड़ पग चाल॥५३॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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