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*भाव भक्ति लै ऊपजै, सो ठाहर निज सार ।*
*तहँ दादू निधि पाइये, निरंतर निरधार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग २* *भाव*
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दक्षिण में गोदावरी के तट पर कनकावती नगरी में भक्त रामदास चमार जूता बनाते थे एक दिन एक चोर चोरी से एक शालग्रम(भगवान की मूर्ति) ले आया और उसके बदले में रामदासजी के जूते पहन गया । रामदासजी अपने शस्त्र(औजार) शालग्राम पर घिसते हुए संकीर्तन करते थे ।
एक ब्राह्मण ने उनका चरित्र देखकर के शालग्राम को उनसे मांग लिया और घर ले जाकर विधि से पूजादि की किन्तु भगवान् ने स्वप्न में कहा - "तू मुझे रामदास के पास शीध्र ही पहुँचा दे । वह जब मेरे ऊपर अपने औजार घिसता हुआ भाव से संकीर्तन करता है तब मुझे बड़ा आनन्द आता है ।" विप्र ने वैसा ही किया । इससे ज्ञात होता है कि भगवान् भाव को ही ग्रहण करते हैं ।
भावग्राहि भगवान हैं, ब्राह्मण पूजा त्याग ।
रामदास के ही गये, पीछे कर अनुराग ॥४८॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###
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