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🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*राम जपै रुचि साधु को, साधु जपै रुचि राम ।*
*दादू दोनों एक टग, यहु आरम्भ यहु काम ॥*
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साभार ~ oshohindipravachan.wordpress.com
संगीतज्ञ जानते हैं कि यदि एक सूने एकांत कमरे में कोई कुशल संगीतज्ञ एक वीणा को बजाए और दूसरे कोने में एक वीणा रख दी जाए खाली, अकेली। कमरे में गूंजने लगे आवाजें एक बजती हुई वीणा की, तो कुशल संगीतज्ञ उस शांत पड़ी हुई वीणा के तारों को भी झंकृत कर देता है; प्रतिसंवाद पैदा हो जाता है। वह जो खाली पड़ी वीणा है, जिसे कोई भी नहीं छू रहा है, वह भी उस गूंजते संगीत से गुंजायमान हो जाती है। वह भी गूंजने लगती है; उससे भी संगीत का स्फुरण होने लगता है।*
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परमात्मा भी प्रतिध्वनि देता है। जैसे हम होते हैं, ठीक वैसी प्रतिध्वनि परमात्मा भी हमें देता है। हमारे चारों ओर वही मौजूद है। हमारे भीतर जो फलित होता है, तत्काल उसमें प्रतिबिंबित हो जाता है; वह दर्पण की भांति हमें लौटा देता है, हमारे प्रतिबिंबों को। श्री कृष्ण कहते हैं, जो मुझे जिस भांति भजता है, उसी भांति मैं भी उसे भजता हूं। जो जिस भांति मेरे दर्पण के समक्ष आ जाता है, वैसी ही तस्वीर उस तक लौट जाती है।
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परमात्मा कोई मृत वस्तु नहीं है, जीवंत सत्य है। परमात्मा कोई बहरा अस्तित्व नहीं है, परमात्मा हृदयपूर्ण है। परमात्मा भी प्राणों के स्पंदन से भरा हुआ अस्तित्व है। और जब हमारे प्राणों में कोई प्रार्थना उठती है और हम परमात्मा की तरफ बहने शुरू होते हैं, तो हम ये न सोचे कि यात्रा एक तरफ से होती है। यात्रा दोहरी है। जब हम एक कदम उठाते हैं परमात्मा की तरफ, तब परमात्मा भी हमारी तरफ कदम उठाता है।
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यह हमें साधारणतः दिखाई नहीं पड़ता। यह साधारणतः हमारे विचार में नहीं आता। यह विचार में हमारे इसीलिए नहीं आता कि हम जीवन की क्षुद्रता में इस भांति उलझे हुए हैं कि उसकी गहरी प्रतिध्वनियों को पकड़ने की क्षमता खो देते हैं। हम इतने शोरगुल में डूबे हुए हैं कि वह जो धीमी-धीमी आवाजें अस्तित्व हमारे पास पहुंचाता है, वे हमें सुनाई नहीं पड़तीं। बड़ी छोटी आवाज है। बड़ी बारीक, महीन आवाज में ध्वनियां हम तक लौटती हैं, परन्तु हमें सुनाई नहीं पड़तीं। हम इतने उलझे होते हैं।
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यदि हम कभी ध्यान करे की हम अपने कमरे में बैठे हैं, और ध्यान से देखे तो पता चलता है कि बाहर वृक्ष पर चिड़िया आवाज कर रही है। ध्यान न करें, तो वह आवाज करती रहती है, हमे कभी पता नहीं चलता। रात के सन्नाटे से गुजर रहे हैं, अपने विचारों में खोए हुए हैं। पता नहीं चलता है कि बाहर झींगुर की आवाज है। होश में आ जाएं, चौंककर जरा रुक जाएं; सुनें, तो पता चलता है कि विराट सन्नाटा आवाज कर रहा है।
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*ठीक ऐसे ही परमात्मा प्रतिपल हमें प्रतिध्वनित करता है, परन्तु झींगुर की आवाज से भी सूक्ष्म है आवाज। सन्नाटे की आवाज से भी बारीक है। पक्षियों की चहचहाहट से भी कोमल है। बहुत चुप होकर, मौन होकर जो उसे पकड़ेगा, वही पकड़ पाता है।* गहरे मौन में, श्री कृष्ण जो इस श्लोक में कह रहे हैं, उसका निश्चित ही पता चलता है। यहां उठती है एक ध्वनि, चारों ओर से उसकी प्रतिध्वनि लौट आती है और उसकी हमारे ऊपर वर्षा हो जाती है।
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श्री कृष्ण कह रहे हैं, जिस रूप में भी हम अपने अस्तित्व के चारों ओर अपने प्राणों से प्रतिध्वनियां करते हैं, वे ही हम पर अनंतगुना होकर वापस लौट आती हैं। परमात्मा प्रतिपल हमें वही दे देता है, जो हम उसे चढ़ाते हैं। हमारे चढ़ाए हुए फूल हमें वापस मिल जाते हैं। हमारे फेंके गए पत्थर भी हमें वापस मिल जाते हैं। हमने गालियां फेंकीं, तो वे ही हम पर लौट आती हैं। और हमने भजन की ध्वनियां फेंकीं, तो वे ही हम पर बरस जाती हैं।
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*यदि जीवन में दुख हो, तो जानना कि आपने अपने चारों तरफ दुख के स्वर भेजे हैं, वे आप पर लौट आए हैं। यदि जीवन में घृणा मिलती हो, तो जानना कि आपने घृणा के स्वर फेंके थे, वे आप पर वापस लौट आए। यदि जीवन में प्रेम न मिलता हो, तो जानना कि आपने कभी प्रेम की आवाज ही नहीं दी कि आप पर प्रेम वापस लौट सके।*
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श्री कृष्ण वही कह रहे हैं। वे कहते हैं, जो जिस रूप में मुझे भजता है...।
जिस रूप में, ध्यान रहे यह शब्द बहुत गहरा हैं। जो जिस रूप में मुझे भजता है, मैं भी उसे उसी रूप में भजता हूं। मैं उसे वही लौटा देता हूं। इस जगत में किसी भी व्यक्ति के साथ कभी अन्याय नहीं होता। अन्याय नहीं होता, उसी का यह श्लोक है।
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*यदि किसी व्यक्ति ने इस जगत को पदार्थ माना, तो उसे यह जगत पदार्थ दिखाई देने लगेगा। क्योंकि परमात्मा उसी रूप में लौटा देगा। यदि किसी व्यक्ति ने इस जगत को परमात्मा माना, तो यह जगत परमात्मा हो जाएगा। क्योंकि यह अस्तित्व उसी रूप में लौटा देगा, जो हमने दिया था।*
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नाचो प्रभु के सामने और छोड़ दो फिर नाच को उसकी तरफ, फिर लौटेगा। जो नाचकर प्रभु के पास गया है, नाचता हुआ प्रभु उसके पास भी आता है। जिसने गीत गाकर निवेदन किया है, उसने और महागीत में गाकर उत्तर भी दिया है। उसका ही आश्वासन श्री कृष्ण के द्वारा अर्जुन को इस श्लोक में दिया गया है।

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