रविवार, 10 नवंबर 2019

= १६० =

🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 卐 सत्यराम सा 卐 🇮🇳🙏🌷
*जाइ रे तन जाइ रे ।*
*जन्म सुफल कर लेहु राम रमि,*
*सुमिर सुमिर गुण गाइ रे ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद्यांश. २७८)
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साभार ~ @Rupa Khant

ओशो अपने प्रवचन में एक बोध कथा .....एक दृष्टांत देते ....वो कहते कि एक यात्री ...रात्रि के अंधेरे में यात्रा करता है ....मध्यरात्रि हो चुकी है.... घनघोर जंगल है ....वो अकेला जा रहा है... उसके पास एक झोली है....

एक अज्ञात आवाज उसको पुकारती है... रुक जा.... खबरदार एक कदम भी आगे बढ़ा तो... वरना मृत्यु... यात्री सोच में पड़ गया कि ये कौन है ?...वो रुक गया.... फिर आवाज आयी ..... तू जहाँ खड़ा है वहाँ कमर की तरफ से झुक जा..... जो नहीं झुका तो मृत्यु.... डरकर यात्री झुक गया .....तीसरा हुक्म हुआ .... तू तेरे दोनों हाथों से तेरे पैरों के आस पास जितनी वस्तु है वो ले लेकर तेरी झोली में डाल दे ....अगर नहीं किया तो मौत....

उसने सब लेकर अपने थैले में भरा ....हुक्म हुआ कि अब खड़ा हो जा.... चलना शुरू कर.... वरना मृत्यु.... सुबह तक यात्रा करना ....चलते रहना ...वरना मौत... सुबह को सूर्योदय होगा तब तू अपनी झोली खोलना.... और सूर्य के प्रकाश में उसे देखना..... तब तू प्रसन्न भी होगा और दुखी भी होगा .....

यात्री ने आदेश अनुसार सब किया और झोली खोल कर देखा.... तो उसमें हीरो थे .....उसने जो मिट्टी समझकर भर भर के डाला था वो हीरे थे ...वो प्रसन्न हुआ कि मुझे इतने हीरे मिले .....लेकिन उतना ही दुखी हुआ कि मैंने सिर्फ इतने कम हीरे क्यों उठाए ?.... मैंने पूरी झोली भर ली होती तो.....

मुझे आपको इतना ही कहना है कि जीवन की यात्रा में कोई अज्ञात हमको कहता है कि तू थोड़ा झुक.... तेरी गति चालू रख ....और तू अपनी झोली भर.... और जो हम भरते हैं वो हरि नाम के मोती होते हैं.....

जब समझ में आएगा तब लगेगा कि मैंने ज्यादा नाम क्यूँ नहीं लिया ?.....अगर ज्यादा लेता तो गांधी की तरह आखिर में मुक्ति के समय मेरे मुख से भी राम नाम निकलता ......

तमाम शास्त्रों का अर्क है ....juice है..... हरि नाम.....

इसलिए श्री राधे ...जय राधे.... राधे राधे श्री राधे......

बापू के शब्द ~ मानस नवजीवन
जय सियाराम

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