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*"दादू" विगस विगस दर्शन करे,*
*पुलकि पुलकि रस पान ।*
*मगन गलित माता रहे, अरस परस मिली प्रान ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *परा भक्ति*
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संतवर दादूजी अपनी पराभक्ति की अवस्था में भगवान के साथ एक होकर भी भक्ति रस का पान करते रहते थे । उन्होंने कहा है -
"दादू" विगस विगस दर्शन करे, पुलकि पुलकि रस पान ।
मगन गलित माता रहे, अरस परस मिली प्रान ॥
दादूजी कहते हैं कि - मैं विगस विगस(प्रफुल्लित हो हो) हो कर भगवान् का दर्शन करता हूं और पुलकि-पलकि करके भक्ति रस का पान करता हूं । मेरा भेद भाव गलित हो गया है । अब मेरा प्रान(जीवात्मा) भगवत् में अरस - परस मिलि (एक होकर) मगन(आनंद मग्न) माता(मस्त निश्चित) रहता है । इससे सुचित होता है कि पराभक्ति का भक्त भगवत् में एक होकर भी भजनंद रूप रस पीता रहता है ।
परा भक्ति में परस्पर, मिल रस पान करंत ।
एक होय भजते रहे, श्री दादूजी संत ॥३४६॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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