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*दादू घायल दरदवंद, अंतरि करै पुकार ।*
*सांई सुणै सब लोक में, दादू यह अधिकार ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *भाग ३* *विरह*
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संतवर दादूजी की विरह दशा का परिचय श्री दादूवाणी के विरह के अंग में मिलता है । उसमें उनकी नाना प्रकार की विरह दशा देखी जाती है । उन्हें भगवत् विरह से एक-एक पल का समय भी युग के समान जान पङता है ।
कहा भी है -
"पीव बिन पल-पल जुग भया, कठिन दिवस क्यों जाय ।
'दादू' दुखिया राम बिन, काल रूप सब खाय ॥"
इससे ज्ञात होता है कि भगवत् विरही जनों को एक पल का समय भी युग के समान जान पड़ता है ।
विरही जन को पलक भी, युगसमान हो जाय ।
श्री दादू की यह दशा, सुनिये चित लगाय॥३३५॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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