रविवार, 24 नवंबर 2019

= १०८ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🙏 *#श्रीदादूअनुभववाणी* 🙏
*द्वितीय भाग : शब्द*, *राग कान्हड़ा ४ (गायन समय रात्रि १२ से ३)*
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, राज. ॥
१०८ - परिचय विनती । भँगताल 
नूर नैन भर देखन दीजै, 
अमी महारस भर भर पीजै ॥टेक॥ 
अमृत धारा वार न पारा, 
निर्मल सारा तेज तुम्हारा॥१॥ 
अजर जरँता अमी झरँता, 
तार अनन्ता बहु गुणवन्ता ॥२॥ 
झिलमिल साँई ज्योति गुसाँई, 
दादू मांहीं नूर रहांई ॥३॥ 
निरन्तर साक्षात्कारार्थ विनय कर रहे हैं - प्रभो ! अपना रूप हमें ज्ञान - विचार नेत्रों से इच्छा भरके देखने दीजिये । हम स्वरूपामृत रूप महारस का इच्छा भर २ कर पान करेंगे । 
आपके निर्मल पूर्ण तेज स्वरूप अमृत की धारा का वार - पार नहीं है । 
आप न पचने वाले को भी पचाने वाले हैं । भक्तों के लिये दर्शनामृत टपकाने वाले हैं । अनन्तों का उद्धार करने वाले हैं । अपार गुणों वाले हैं । 
प्रभो ! आपकी स्वरूप ज्योति झिलमिल रूप से मेरे अन्दर ही प्रकाशित हो रही है । 
(क्रमशः)

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