#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (चित्र बंध, गोमूत्रिका बंध. ६) =*
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*दोहा*
*माया दुख को मूल है काया सुख नहिं लेश ।*
*षाया बिष मामूर है आया नखतहि केश ॥६॥*
यह सांसारिक मोह ममता दुःख की प्रमुख जड(मूल) है । इस कारण में सुख का लेशमात्र(थोड़ा बहुत) अंश भी विद्यमान नहीं है । यह काया नखों से केशों तक विष से ही परिपूर्ण है ॥६॥
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*गोजी गोजी नर निये बिंदु पाल रह राम ।*
*दक्ष विवेकी पाइ है चतुरक्षर बिश्राम ॥७॥*
केवल इन्द्रियनिग्रह से कार्य सिद्ध नहीं होता, अपितु बिन्दु(वीर्य) की रक्षा करते हुए हरिनामस्मरण से कार्यसिद्धि होती है । ऐसा दक्ष कार्यसाधक विवेकी पुरुष ही सर्वसुखसम्पन्न माना जाता है ॥७॥
(क्रमशः)

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