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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य ४. आदि अंत अक्षर भेद - ९/१० =*
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*राषत काहे न बापुरा । मसकति करि कै माम ॥*
*नास करै मति आपना । मरद होह तज काम ॥९॥*
अरे मुर्ख ! तूं अपने चित्त को निगृहीत क्यों नहीं करता ? उस निगृहीत कर ले तथा उसको भगवच्चरणारविन्दों में बैठा दे । ऐसा न करता हुआ तूँ अपना नाश न कर । तूँ वीर पुरुष है, अतः अपनी काम वासनाओं पर निग्रह कर, उनको त्याग दे ॥९॥
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*लेवै तौ हरि नाम ले । हरि सौं करै सनेह ॥*
*देवै तौ उपदेश दे । हम जानत हैं येह ॥१०॥*
यदि संसार में तुझे कुछ लेना ही है तो केवल हरि का नाम ले । उसी प्रभु से स्नेह कर । यदि संसार में तुझे कुछ देना है तो धर्म का, प्रभुभजन का उपदेश दे । हम तो इतना ही समझते हैं जो तुझे बता दिया ॥१०॥
(क्रमशः)

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